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तीर्थकर महावीरका समवशरण इस जनपदमें आया था। उस समय इस जनपदका राजा उदायन था और इसकी रानी प्रभावती महारज चेटककी पुत्री थी। तीर्थंकर महावीरके उपदेशोंसे उदायन बहुत प्रभावित हुआ और वह उनका भक्त बन गया। उसने महावीरके जीवनकालमें ही उनका मन्दिर बनवा कर चन्दनकी प्रतिमा स्थापित की थी और वे दोनों ही उस प्रतिमाकी पूजा किया करते थे।
इस अतिशयपूर्ण प्रतिमाके चमत्कारोंको सुनकर उज्जयिनो-नरेश महाराज चण्डप्रद्योतने उसे चोरीसे अपने यहाँ मंगा लिया। उदायनने मूर्तिको वापस करने के लिये कहा, पर चण्डप्रद्योतने मत लौटानेसे इनकार कर दिया । उदा. यन विशाल सेना लेकर उससे लड़ने गया । घमासान युद्ध हुआ। चण्डप्रद्योतको बन्दी बनाकर कारागृहमें बन्द कर दिया और तीर्थकर महावीरकी उस चन्दनकी प्रतिमाको सिन्छके मन्दिरमें प्रतिष्ठित कर दिया गया। उदायन सम्यक्दृष्टि श्रावक था और उसकी रानी प्रभावती भी धर्मश्रद्धालु थी। किसी पर्वके अवसरपर रानी प्रभावतीके कहनसे उदायनने चण्डप्रद्योतको कारागृहसे मुक्त किया और उसे उसका राज्य भी वापस कर दिया । ___ महावीरफा समवशरण जब सिन्धमें आया, तो महाराज उदायन और रानी प्रभावती इस समवशरणमें प्रसन्नतापूर्वक सम्मिलित हुए। उनके धर्मोपदेशसे प्रभावित होकर उदायन और प्रभावतीने श्रमणव्रत ग्रहण कर लिया। राजा उदायन दिगम्बर मुनि बन गया और प्रभावती आर्यिका । कुसाध्य
हरिवंशपुराणमें तीर्थंकर महावीरके समवशरण-विहारका निर्देश करते हुए कुसन्ध्य देशका वर्णन किया गया है। इसी पुराण में एक कुशोदय देश भी पाया है, जिसकी राजधानी शोर्यपूर थी। आजकल यह स्थान आगरा जिलेके बटेश्वरके अन्तर्गत है। सम्भव है कुसद्य और कुसन्ध्य देश एक ही हैं। शौर्यपुर और कान्यकुब्जके मध्यमें शंकासा (शंकास्था) नगरी है। यह फर्रुखाबाद जिलेमें पड़ती है। ऐसा अनुमान होता है कि यह समस्त प्रदेश कुसद्य या कुसन्ध्यके नामसे प्रसिद्ध रहा है। संक्षेपमें आगरासे कन्नौज तक फैला हुआ प्रदेश कुसन्ध्य या कुसध है। १. उदायणस्स रग्लो महादेवी चेटगरामधूया समणोवासिया पभावई ।
-उत्तराध्ययन, नेमिचन्द्राचार्यको टीका सहित, पत्र २५३--१. २. दीर, वर्ष ९, १० ११३-११५. २७८ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा