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था । इस नगरमें विजयमित्र' नामक राजा राज्य करता था । सीर्थकर महावीरका समवशरण ग्रामानुग्नाम विहार करते हुए वर्दमानपुरमें आया। अन्य जनताके समान विजयमित्र भी तीर्थकर महावीरके समवशरणमें धर्मश्रवण करने के लिए गया। यहां उसने देखा कि विश्वकल्याणके हेतु तीर्थंकर महावीरका धर्म-प्रवचन हो रहा है । वह मनोयोगपूर्वक उनके उपदेशको सुनता रहा। उसे तीर्थंकर महावीरका व्यक्तित्व विकसित पुष्पके सौरभके समान प्रतीत हुआ और ऐसा लगा कि चारों ओरका वातावरण सुरभित हो रहा है। सरलता, सत्यनिष्ठा, संयम, इन्द्रिय-निग्रह आदि जीवनमूल्य विविध प्रकारसे जीवनको प्रेरित कर रहे थे। वह तीर्थकरकी वाणीसे भक्ति-विभोर हो गया
और विनयपूर्वक उनकी वन्दना की । वाराणसी : जितशत्रुका नमन
प्राचीन समयमें काशीराष्ट्र अत्यन्त प्रसिद्ध था। इस राष्ट्रकी राजधानी वाराणसी नगरी थी। इसके बाहर कोष्ठक नामक चैत्य था। यहां कई बार तीर्थंकर महावीरका समवशरण आया । यहाँके तत्कालीन राजाका नाम जितसत्र था। इस नगरीके चलनी पिता और सूरादेव नामक धनाढय गहस्थ महावीरके दश श्रमणोपासकोंमें थे। यहाँके राजा लक्षको काममहावन चैत्यमें सीर्थकर महावीरने अपना शिष्य बनाया था।
तीर्थकर महावीरके समवशरणका समाचार अवगतकर जितशत्रु उनकी वन्दनाके लिये पहुंचा और उसने अत्यन्त भक्ति-भाव-विभोर होकर उनकी अर्धा की। फाकन्दी : पन्य एवं सुनक्षत्रका मोह छिन्न
काफन्दो उत्तर भारतकी प्राचीन और प्रसिद्ध नगरी थी। यह नूनखार स्टेशनसे दो मील और गोरखपुरसे दक्षिणपूर्व तीस मील किष्किन्धा अथवा खुखुम्दक नामसे प्रसिद्ध है।
१. विपाकसूत्र, पी० एल० वैद्य-सम्पादित, १० १,०१०, पृ०७२. २-३. वाराणसी नाम नगरी .......... जियससू राया ।-उवाटगदसाओ, पी० एल०
वंद्यसम्पादित, पृ. ३२, ४. श्रवण भगवान् महावीर, मुनि कल्याणविजय, पृ० ३६१. करगन्दी नामं नयरी होत्या ..."जियसत्तू राया।
-अणुत्तरोववारयदसामो, एन. बी. वंध सम्पावित, पृ० ५१. २७६ : तीभंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा