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शिवराजर्षिने इन्द्रभुति गौतमसे निवेदन किया--"स्वामिन् ! अज्ञानतापूर्वक तो मैंने बहुत तप किया है, पर अब मैं ज्ञानपूर्वक तीर्थकर महावीरकी शरणमें रहकर संयम और तपको आराधना करना चाहता हूँ। कृपया मुझे निर्ग्रन्थ मुनिके व्रत दीजिए।"
शिवराजषिने पंचमुष्टि लोंचकर दिगम्बर-दीक्षा ग्रहण की।' पुरिमताल : महाबलका'-वन्दन
प्रयागका ही प्राचीन नाम पुरिमताल बतलाया जाता है। जैन ग्रन्योंके आधारपर यह अयोध्याका एक शाखानगर रहा होगा। यह निःसन्देह है कि पुरिमताल प्राचीन नगर था। इस नगरके शकटमुख उद्यानमें बम्गुर श्रावकने तीर्थंकर महावीरकी अर्चा की थी। पुरिमतालके अमोघदर्शी उद्यान में तीर्थकर महावीरका समवशरण आया हुआ था । भव्य नर-नारी इस समवशरणमें सम्मिलित होकर धर्मामृत का पान कर रहे थे।
जब इस नगरके नृपति महाबलको तीर्थंकर महावीरके समवशरणके पधारनेकी सूचना प्राप्त हुई, तो वह भी अपने दल-बल सहित वन्दनाके लिये चला। जब वह समवशरणमें प्रविष्ट हुआ, तो उसे विजयचौर सेनापतिके पुत्र अभग्नसेनके पूर्व भवोंका वर्णन सुनायी पड़ा । इस पूर्व भवावलिको सुनकर महाबल प्रभावित हुआ और उसे संसार, शरीर एवं भवोंसे विरति होने लगी। पर उसके मनमें राज्य संचालनको आकांक्षा अवशिष्ट थी। अतः धार्मिक प्रवृत्तिके रहते हए भी, वह तीर्थकर महावीरकी केवल वन्दना कर नगरमें लौट आया । महाबल अपने समयका प्रसिद्ध शासक था और तीर्थकर महावीरके प्रति अपार श्रद्धा रखता था । बळमानपुर : विजयमित्रका धर्मश्रवण
वर्द्धमानपुरकी स्थिति आधुनिक बंगाल में होनी चाहिये। यदि इसका सम्बन्ध आधुनिक वर्दवान नगरसे जोड़ा जाय, तो आश्चर्य नहीं | इस नगरके बाहर विजयवर्द्धन नामक उद्यान था । यहाँ मणिभद्र यक्षका विशाल मन्दिर
१. समणेगं भगवसा महावीरेणं अट्ठ रायाणो मुंहे भवेत्ता आगारातो अणगारिस
पवाविता, तं0-बीरंगय, संजय एणिज्जते य रायरिंसी। सेय सिवे उदासणे [ तह संखे कासिंवद्धणे ]-स्थानांगसन, सटीक, स्थान ८, सूत्र ६२१ पत्र ( उत्त
राई ) ४३०-२. २. विपाकसूत्र (पी० एल० वैद्य द्वारा सम्मादित) सू० १, ४० ३. प. २६-२७,
तीर्थकर महावीर और उनकी देशना : २७५