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तीर्थकर महावीरका समवशरण हस्तिनापुरके निकटवर्ती सहसाम्रयनमें पहुँचा। समवशरणके प्रभावसे इस आम्रवनका सोन्दर्य कई गुना बढ़ गया । समवशरणसभाको चर्चा समस्त फुरुदेशमें व्याप्त हो गयी। नर-नारियाँ विभिन्न प्रकारकी केश-भूषामें सजकर महावीरके समवशरण में सम्मिलित हुई । स्वार्थी, भोगी, उत्तळ ग्वल पुरुष अपनी विभि-लालसाओंसे विवश होकर इस धर्मसभामें सम्मिलित न हो सके, पर चिभिन्न दिशाओं और विदिशाओंसे अगणित नर-नारी धर्म-प्रवचनके श्रवणके लिये एकत्र हुए। समवशरण हरित-श्याम वर्णकी मणियोंसे सुशोभित था और स्थान-स्थानपर मणि-मुक्ताओंके झालरतोरण लगे थे। उद्यानको उपत्यकामें विभिन्न प्रकारके पक्षी कलरव कर रहे थे। विभिन्न सरोवरोंमें कमल विकसित थे और मंगलवाद्योंकी उछाहारी रागनियोंसे विशाल उद्यान-प्रान्त गुजित था। तोरण, द्वार, गोपुर, मण्डप और वेदिकाओंसे तटभूमि रमणीय थीं। जब देशना आरम्भ हुई, तो किसीने प्रश्न किया--"प्रभो! शिवराजपि इस लोक में सात ही द्वीप और सात ही समद्र बतलाता है। क्या उनका यह कथन सत्य है ?" __महावीरने कहा-' गौतम ! इस तिर्यक् लोक में रवयंभूरमण समुद्र पर्यन्त असंख्यात द्वीप और समुद्र है। शिन्त्रका उक्त कथन सत्य नहीं है ।" ___ आजकी दिव्यध्वनिका विषय लोक-वर्णन था । लोकका स्वरूप, विस्तार, द्वोप, समुद्र, क्षेत्र आदिके सम्बन्धमें उपदेश हो रहा था। जब शिवराजर्षिको तीर्थकरके उपदेशका परिज्ञान हया, तो उसका विभंगज्ञान नष्ट हो गया और वह सोचने लगा कि काय-कटेश सहनकर मैंने जो पुण्यार्जन किया है, वह तो संसार परिभ्रमणका ही कारण है। राग-द्वेषकी निवृत्तिके बिना जन्म-मरणके दुःखोसे छुटकारा प्राप्त नहीं किया जा सकता है। वह जितना अधिक अपना आत्मालोचन करता, उतना ही उसकी आत्मा में प्रकाश फैलता जाता। राशि-राशि सौन्दर्य उसके चरणों के समक्ष विद्यमान था । अतएव बह तीर्थकर महावीरके समवशरणमें आकर जिम-दीक्षा धारण करना चाहता था। मोहका परदा हटते हो, उसकी आत्मा द्रवीभूत हो गयी। मिथ्यात्वका पंक घुल गया और सम्यक्त्वको ज्योति प्रज्वलित हो गयी।
शिवराजर्षिने त्रिवार 'नमोस्तु' किया और गौतम गणधरके निकट बैठकर अपनी श्रद्धा और भक्ति प्रकट की । उसकी आत्मासे ज्ञान और दर्शनको किरणे निःसृत होने लगी। उसने अनुभव किया कि कर्मावरणको सघनता छूट रही है और आध्यात्मिक अनुभूति बढ़ती जा रही है। सम्यक्त्वके साथ सम्यक विवेक भी उत्पन्न हो गया है और आत्मा चारित्र ग्रहण करनेके लिये उत्सुक है। २७४ : तीर्थंकर महावीर और उनको आचार्य-गरम्पग