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दशार्णभद्रको दीक्षित होते देखकर इन्द्रने अपने पराजयका अनुभव किया । बहु दशार्णभद्र के पास गया और उसके त्याग और वैराग्यको पुनः पुनः प्रशंसा करने लगा । दशार्णभद्रने तीर्थंकर प्रभुके समवशरण में अपने मिथ्यात्व और मोहका दलनकर, सम्यक्त्व लाभ किया ।
सुम : कण-कण पुलकित
वर्तमान में हुगली और मिदनापुरके बोचके प्रदेशको 'सुह्य' माना जाता है । यह उड़ीसा की सीमा पर फैला हुआ दक्षिण बंगका प्रदेश है । कुछ विद्वान् 'दक्षिण बंगको' सुम मानते हैं और इसकी राजधानी ताम्रलिति बतलाते हैं । एक अन्य मान्यता के अनुसार हजारीबाग, संथाल परगना के जिलोंको गणना सुह्यके अन्तर्गत है । वैजयन्तीकार सुझको राढका ही नामान्तर मानते हैं ।
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तीर्थंकर महावीरका समवशरण ताम्रलिप्त, राढ़ और सुह्यकी भूमिमें पहुँचा था । प्राकृत चरितकाव्यों में समुद्रतटवर्ती ताम्रलिन्तिमें समवकारणके पहुँचनेका निर्देश आया है । महावीरके धर्मोपदेश यहाँकी भूमिका कण-कण व्यानन्दसे विभोर था | प्रजा दर्शन के लिए नदी नालोंके समान उमड़कर जा रही थी | महावीर धर्मका स्वरूप प्रतिपादित कर रहे थे और जनता उत्सुक होकर धर्मामृत पान कर रही थी। विश्वबन्धुत्व और विश्वमैत्रीका उपदेश सभीको प्रभावित कर रहा था। इस धरतोकी मानसिक और सांस्कृतिक पता समाप्त हो रही थी । स्वस्थ चिन्तनको सुमधुर और सुरभित वायु लोकजीवनको आनन्दित कर रही थी। सुह्य देशको भूमि आज कृतार्थ हो गयी थी, उसका कण-कण पुलकित था ।
व्यस्मक पोतनपुर : प्रसन्नचन्द्र की दीक्षा
अस्मक देशको राजधानी पोतनपुर थी । बौद्ध ग्रन्थोंमें भी पोत नगरको अस्सककी राजधानी बताया गया है। जातक-ग्रन्थोंसे ज्ञात होता है कि पहले अस्सक और दन्तपुरके राजाओं में परस्पर युद्ध हुआ करता था । यह पोतन कभी काशीराज्यका अंग भी रह चुका था। वर्तमान पैठनकी पहचान पोतनसे की जाती है। सातवाहनको राजधानी प्रतिष्ठान यही पोतनपुर है ।
एक बार महावीरका समवशरण विहार करता हुआ पोतनपुर नगरमें पधारा | इस नगर के बाहर मनोरम नामक उद्यान में धर्मपरिषद् एकत्र हुई 1 समवशरणके आनेका समाचार प्राप्त करते ही पोतनपुरनरेश प्रसन्नचन्द्र र तत्काल
१. ज्यागरंकी आँच मल बुद्धिज्म, पृ० २१. २. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित, पर्व १०
सर्ग ९. पद्म २१-५०.
तीर्थंकर महावीर और उनकी देशना : २६९