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शाण : क्शाणभद्रका' निन्थत्व
भोपाल राज्य सहित पूर्व मालव प्रदेश पहले दशाणं कहलाता था । मौर्यकालमें इसकी राजधानी चैतगिरि में और उसके पश्चात् विदिशा या भेलसामें थी। जन सूत्रोंमें इस देशकी गणना आर्यदेशों में की गई है और इसकी राजधानीका नाम मृत्तिकावती लिखा गया है। मृत्तिकावती वत्सभूमिके दक्षिणमें प्रयागके पार्वतीय प्रदेशोंमें अवस्थित यो। ___यहाँका राजा दशाणभद्र था। उसे एक दिन चरपुरुषोंद्वारा यह सूचना प्रास हुई कि फैल जात; दशार्णदुर सार्थकर महावीरका समवशरण आनेवाला है। चरपुरुषको बात सुनकर राजा अत्यन्त प्रसन्न हुआ और उसने अपनी सभाके समक्ष निवेदन किया-"कल प्रातःकाल में तीर्थकर महावीरकी वन्दना ऐसी समृद्धिसे करना चाहता हूँ जैसी समृद्धिसे कभी किसीने न की हो।" ___ वह अन्तःपुरमें गया और अपनी रानियोंसे भी तीर्थकर-वन्दनाकी बात करने लगा। दसार्णभद्र रात्रिभर तीथंकर महावीरके स्वागत के लिये कल्पनाएँ करता रहा । सूर्योदयसे पूर्व ही नगरके अध्यक्ष को बुलाकर नगर सजानेका आदेश दिया। नगर ऐसा सजाया गया, जेसे वह स्वर्गका एक खण्ड ही हो । राजाने स्नान किया, अंगराग लगाया, पुष्पमालाएं पहनीं, उत्तमोत्तम वस्त्राभूषण धारण किये और उत्तम गजपर सवार होकर तीर्थंकर महावीरके समदशरणको ओर ऋद्धिपूर्वक चल पड़ा ।
उसका अहंकार देखकर इन्द्रके मनमे दशार्णभद्रके गर्वहरणकी इच्छा व्याप्त हुई । अतः इन्द्रने जलमय एक विमान बनाया। उसे नाना प्रकारके स्फटिक मणियोंसे सुशोभित किया । उस विमानमें कमल आदि पुष्प विकसित थे और नानाप्रकारके पक्षी कलरव कर रहे थे। उस विमानमें बैठकर इन्द्र अपने देवसमुदायके साथ समवशरणकी ओर चला।
इन्द्र अतिसज्जित ऐरावत हाथीपर बैठकर पृथ्वीपर पहुंचकर देव-देवियोंके साथ समवशरणमें आया । इन्द्र की इस ऋद्धिको देखकर दशार्णभद्रके मनमें अपनी ऋद्धि-समृद्धि क्षीण लगने लगी और उसने वस्त्राभूषण उतारकर दिगम्बर-दीक्षा धारण कर ली।। १. दसण्णरज्जं मुइय, चइत्ताणं मुणीचरे । दसण्णमहो निक्षतो, सक्त्रं सक्कण चोइलो ।।
-उत्तराध्ययन, शान्त्याचार्य-टीका, अध्ययन १८, श्लोक ४४, पत्र ४७-२. दशार्णभद्रो दशार्णपुरनगरवासी विश्वंभराविभुः यो भगवन्तं महाबीर दशार्णकरनगरनिकटसमयसृतमुद्यान-ठाणांगसूत्र सटीक, पत्र ४८३-२. २६८ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परर