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काम्पिल्य नगर में संजय या जय नामक एक राजा राज्य करता था ।' एक दिन वह सेना और बाहन आदिसे सत्रित होकर आखेट आदिके लिए निकला और घोड़ेपर आरूढ़ राजा केसर नामक उद्यानमें मृगोंका शिकार करने लगा । इस उद्यानमें एक परमतपस्वी मुनि द्राक्षा और नागवल्ली आदि लताओंके मण्डपमें ध्यानस्थ थे। राजा मुनिके समीप पहुंचा और घोड़ेसे उतरकर मुनिराजके चरणोंमें 'नमोऽस्तु' कर अपने अपराधकी क्षमा याचना करने लगा। मुनिराज कहने लगे--" शिव ! तु भाय है । गुना और भारत उत्पन्न करना छोड़ अभय देनेवाले बनो और हिंसाके मार्गको छोड़ो । प्राणियोंको दुर्गतिमें ले जानेवाली हिंसा है। जो व्यक्ति यह लोक और परलोकके सुखको कामना करता है उसे हिंसाका त्याग कर देना चाहिए । स्त्री, पुत्र, मित्र, धन, धान्य आदि पदार्थ क्षणविध्वंसी हैं 1 जो आत्मोत्थानका इच्छुक है वह संसारके विषय-सुखोंमें आसक्त नहीं रहता। अतएव हे राजन् ! आपको यात्मकल्याणके लिये प्रवृत्त होना चाहिए।"
संजय तीर्थकर महावीरके समवशरणमें प्रविष्ट हुआ और यहाँ उसने निम्रन्थदीक्षा ग्रहण की। इसो नगरका कुण्डकोली भी अपनी पत्नी सहित महावीरके समवशरणमें धर्मसाधनमें प्रवृत्त हुआ। काम्पिल्य नगरीके जन-समुदायने वहे भक्ति-भावके साथ तीथंकर महावीरका अभिनन्दन किया और उनके प्रति अपार भक्ति प्रदर्शित को।
अहिच्छत्रामें भी तीर्थकर महावीरका समवशरण पहुंचा था और वहाँके निवासियोंने धर्मामृतका पानकर अपनेको कृतार्थ माना था।
सम्भवतः पंजाबमें ही गान्धारदेशकी राजधानी तक्षशिला भी भगवान् महावीरके समवशरणसे पवित्र हुई थी। यहाँके निकटमें कोटेरा ग्रामके पास एक पहाड़ोपर तीर्थकर महावीरके शुभागमनको सूचित करनेवाला एक ध्वस्त मन्दिर अवशिष्ट है । जेन साहित्यमें पंचालको गणना सोलह जनपदोंमें की गयी है । इसमें सन्देह नहीं कि तीर्थकर महावोरके समवशरणसे पंचालके सभी नगर पवित्र हुए हैं।
१. तीर्थकर महावीर, भाग २, पृ० ६६०; प्रवण भगवान महावीर, प्रथम संस्करण,
पृ० ३६१, तथा भगवान् महावीर, कामता प्रसाद, प्रथम संस्करण, पृ. १३५. विशेष जानने के लिए देखें-उत्तराध्ययन, सुखबोपटीका, अध्ययन १८, २२८१, २५९।२.
तीर्थकर महावीर और उनको देशना : २६७