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महावीर क्रियाकाण्ड और यज्ञका विरोध, वार्मिक जड़ता एवं आर्थिक अपव्ययको रोकने के लिए ही कर रहे हैं। मनुष्य मनुष्य के बीच भेद-भावकी खाई जातिवादके कारण उत्पन्न हो रही है । ईश्वरके नामपर जनता पुरुषार्थको भुली हुई है। यही कारण है कि तीर्थंकर महावीरने आत्माको हो ईश्वर बताया है और आत्माके लिए जोर दिया है। संतुलित और संघर्ष - विहोन जीवन-यापन के लिये आचार, विचार-सहिष्णुता एवं वाणीकी उदारता आवश्यक है । मानव जीवन के मूल्योंमें शांति, संयम, क्षमा और सुखको प्रधान स्थान दिया गया है। अतएव मैं तीर्थंकर महावोरके चरणों में नमनकर धार्मिक आचार-व्यवहारकों ग्रहण करूँगा | तीर्थंकर महावीरकी सुदृढ़ भक्ति ही आत्मोस्थानका कारण है ।" इस प्रकार विचारकर चण्डप्रद्योतने इन्द्रभूति गौतम गणधर से श्रावक के व्रत ग्रहण किये ।
पांचाल जनपद : जन-अभिनन्दन
पांचाल जनपदकी राजधानी काम्पिल्य नगरी थी। यह नगरी गंगा के तट पर बसी हुई थी । काम्पिल्यके नामकरण के सम्बन्ध में कई मत हैं। पांचाल के राजा भृम्यश्व के एक पुत्रका नाम कपिल या कथा | इसी नगर नगरीका नाम कम्पिल्य पड़ा होगा। पौराणिक इतिवृत्तों ज्ञात होता है कि पंचाल राज्य दो भागों में विभक्त था । इन दोनों भागोंकी सोमा गंगा नदी थी। गंगा के उत्तरका भाग उत्तरी पंचाल कहलाता था, जिसकी राजधानी अहिच्छत्रा थी । दक्षिणवाला भाग दक्षिण पंचालके नामसे प्रसिद्ध था, जिसकी राजधानी काम्पिल्य थी | पंचालके निर्बल हो जानेपर कौरववंशी शासकोंने यहाँ अघि
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पत्य जमाया ।
काम्पिल्य जैन तीर्थंकरोंकी विहारभूमि रहा। भारतवर्षको प्रसिद्ध दस राजधानियों में काम्पिल्यको गणना है ।
?. Malva was blessed by the auspicious visit of Tirthankar Mahavira, in whose time king pradyota was rules of ujjain a great devotee of the lord in deed.—The religion of Tirthankaras, P. 167.
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२. जम्बूदीवे भरवासे दस रायहाजिओ पं० [सं० - चंपा १, महरा २, वाराणसी ३, सावत्थी ४, सहत सातेतं ५ हृत्वियणावर ६, कंपिल्ल ७ मिहिला ८ को संबि ९, रायगिहूं - ठाणांगसूत्र, ठाणा १० उद्देशः ३, सूत्र ७१९ पत्र ४७७-२. अस्थि रहेन जंबूद्दीने दक्षिण भारह खण्डे पुष्यदिसाए पंचाला नाम जणवओ । तत्थ गंगानाम महानई तरंगभंगिपक्वाफिज्जमान पामार भित्तिअं कं पिस्लपुरं नाम नगरं
विविभतीर्थकल्प,
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२६६ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा