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मयूर पंख यहाँ कहाँसे आयेगा ? यदि कोई मयूर पंख ले भी आये, तो उसे हवासे उड़ जाना चाहिये । इनकी जानकारीके बिना आप उसे लेनेके लिये तैयार हो गये | अतः चौथे पावे आप हैं।"
राजाने उस चतुर सुन्दरी कन्यासे विवाह कर लिया और जन्मान्तरमें वह कनकमंजरी तोरणपुर नामक नगर में दृढ़शक्ति राजाकी पुत्री हुई और उसका नाम कनकमाला रखा गया। वह चित्रकार मरकर व्यन्तरदेव हुआ । कनकमालाने उस देव से पूछा - "इस भवमें मेरा पति कौन होगा ?" देवने कहा" पूर्व में जो जितशत्रु नामक राजा था, वही इस भव में सिहरथ नामक राजा होगा और घोड़े पर सवार होकर यहाँ आयेगा । "
इस आख्यानको सुनकर सिंहथको भी जाति-स्मरण हो गया । कुछ दिनों तक राजा वहाँ रहा और पश्चात् राजधानीमें लौट आया । वह प्रायः पर्वतपर कनकमाला के यहाँ जाया करता था और वहाँ रहनेके कारण ही उसका नाम नग्मति पड़ा ।"
कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन राजा ससैन्य भ्रमण करने निकला और बही नगरके बाहर एक आम्रवृक्षको देखकर वह प्रतिबोधको प्राप्त हुआ और प्रत्येकबुद्ध हो गया ।
नगत प्रत्येकबुद्ध होनेपर भी तीर्थंकर महावीरके समवशरण में गये और वहाँ ही उन्होंने प्रत्येकबुद्धत्व की योग्यता अर्जित की। सिंहरथको तीर्थंकर महावीरके सम्पर्कने ही जितशत्रुकी पर्याय में प्रत्येकबुद्धत्वप्राप्तिको योग्यता समाहित की ।
सुश्मकवेश' ( दक्षिणभारत) : विद्रवाजकी दीक्षा
इस देशको राजधानी पोदनपुर थी। तीर्थंकर महावीरका समवशरण यहाँ आया । समवशरण के आनेका समाचार प्राप्त करते ही सभी नर-नारी उनकी वन्दना के लिये समाहित होने लगे । राजा विद्वदाज भी अपने मंत्रियों सहित तीर्थंकरकी वन्दना लिये गया। महावीरका कल्याणकारी उपदेश सुनकर उसकी मात्म-ज्योति प्रज्वलित हो गयी । वह मानव-जीवन के महत्त्वको समझने लगा- -"जो मानव सच्चे मनसे धर्माचरण करता है, वह अपने भीतरकी
१. तओ कालेन जम्हा नगे अईह तुम्हा 'नगइ एस' त्ति पट्टियं नामं लोएन राइगो । - उतराष्ययन ( नेमिचन्द्र टीका), पत्र १४४२.
२. महावीर जयन्ती स्मारिका सन् १९७३, पृ० ४०.
तीर्थंकर महावीर और उनकी देशना : २६३