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प्राणीवर्ग परस्परके वैर-विरोधको छोड़कर शान्ति और सुखका अनुभव करता। महावीरके प्रभावसे चारों ओर सुभिक्ष और शान्ति व्याप्त हो जाती थी। . वंगदेश : सिंहरथ-आतिस्मरण एवं नग्गतिका प्रत्येकबुद्धत्व
तीर्थकर महावीरका समवशरण बंगदेशके पुण्ड्रबर्द्धन' नगरमें पधारा । इस नगरकी स्थिति वर्तमान में मालदह जिले में मालदहसे छह मील उत्तरकी ओर बंगालमें मानी जाती है। वर्तमानका पाहुआ अथवा पांडुआ, पुण्डका अपभ्रंश रूप है | पुराने पुण्ड्रवर्द्धनमें दोनाजपुर, रंगपुर, नदिया, वीरभूमि, जंगलमहल और चुनार जिले शामिल थे।
इस नगरमें सिंहस्थ नामका राजा राज्य करता था | एक बार उत्तरापथके किसी राजाने सिंहरथको अश्व भेंट किये। उनमें एक अरव वक्रशिक्षावाला था। राजा उस चक्रशिक्षिावाले अश्वपर सवार हुआ और उनका कुमार दूसरे अश्वपर । इस प्रकार राजा सिंह रथ अपनी सेनाके साथ नगरके बाहर कोड़ा करनेके लिये चल पड़ा।
घोड़ेको चाल तेज करनेके लिये राजाने उसे चाबुक लगाया । घोड़ा तेजीसे भागा। राजा घोड़ेको रोकनेके लिये जितनी ही लगाम खींचता, घोड़ा उत्तना हो तेज होता जाता। इस प्रकार भागता-मागता घोड़ा राजाको बारह योजन दूर तक जंगल में ले गया। लगाम खींचनेसे राजा थक गया था । अत: उसने घोड़ेकी लगाम ढीली कर दी । रास ढीली होते ही घोड़ा रुक गया । घोड़ेके रुक जानेसे राजाको यह ज्ञात हो गया कि यह अश्व वक्रशिक्षावाला है। राजाने घोडाको वृक्षसे बांध दिया और फल-पुष्प खाकर अपनो क्षुधा शान्त की । रात्रि व्यसीत करनेकी दृष्टिसे राजा पहाड़के ऊपर चढ़ा। उसे सातमंजिल ऊंचा भवन दिखलायी पड़ा । राजा उस भवनमें भीतर गया और उसे एक अत्यन्त रूपवती कन्या मिली । कन्याने राजाको उच्चासन दिया और उसका परिचय पूछा । राजाने भी कन्याके सम्बन्धमें जिज्ञासा व्यक्त करते हुए कहा-"तुम कौन हो और यहाँ एकान्त स्थानमें क्यों रहती हो?" ___कन्याने उत्तर दिया--"पहले मेरे साथ आपका विवाह हो जाय, तत्पश्चात् मैं आपको सारी बात बताऊँगी।" विवाहके अनन्तर उस कन्याने कहना बारम्भ किया___"क्षितिप्रतिष्ठ नामक नगरमें जितशत्रु नामका राजा रहता था। एक समय १. श्रमण भगवान् महावीर, मुनि कल्याणविजय, पृ० ३७६ तथा तीर्थकर महावीर, भाग २, ५० ५६९.
तीपंकर महावीर और उनकी देशमा : २६१