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कलिंग देशके वसन्तपुर नगरके राजा वीरश्रेणीका राजकुमार चित्रश्रेणी इतना सुन्दर था कि उसके रूपको देखकर उस नगरकी स्त्रियाँ अपनेको भूलफर उसपर मोहित हो जाती थीं। जनताने राजासे निवेदन किया कि कुमारका नगर-परिभ्रमण स्त्रियोंके कप्रका कारण होता है, अतएव कुमारके नगरपरिम्रमणपर बन्धन लगा देना चाहिये। कुमारका अपराध न होमेपर भी राजाने प्रजाको संतुष्ट करनेके हेतु राजकुमारको देशसे निष्कासित कर दिया । वह रत्नपुर नगरीमें आया । वहाँके राजाकी पुत्री पद्मावती अनिन्द्य सुन्दरी थी । अतएव अनेक राजकुमार उसके साथ परिणय करनेके हेतु वहां आते, पर वे सभी निराश होकर लौट जाते। पद्मावसोने यह संकल्प किया था कि जो रूप-लावण्यमें उससे अधिक सुन्दर होगा, उसीके साथ वह विवाह करेगी।।
जब कुमार चित्रश्रेणी ग्लएर नगरीमें पहुँचा तो उसके सौन्दर्यको चर्चा समस्त नगरमें व्याप्त हो गयी और नगरवासी युवक-युवतियाँ उसे देखने के लिये आने लगे। चित्रश्रेणीको देखकर पद्मावतीका पिता बहुत प्रसन्न हुआ
और अपनी रूपसी कन्या पद्मावतीका विवाह चित्रश्रेणीके साथ कर दिया। चित्रश्रेणी कुछ दिनों तक सांसारिक ऐश्वर्य और भोग-विलासोंका उपभोग करता रहा, पर जब उसे कुमारीपर्वतपर तीर्थकर महावीरके समवशरणके पधारनेका समाचार प्राप्त हुआ, तो वह उनके समवशरणमें धर्मामृत सुननेके लिये पहुँचा । संयोगवश महाराज वीरश्रेणी भी वहाँ उपस्थित थे। वीरश्रेणीने चित्रणीके विरक्त भावोंको अवगतकर स्वयं भी दीक्षित होनेकी इच्छा व्यक्त की। वे धर्मोपदेश सुनकर नगर में पधारे और चित्रश्रेणीका राज्याभिषेककर पुनः तीर्थंकर महावीरके निकट जाकर मुनि-दोक्षा ग्रहण की।
चित्रवेणी और पद्मावतीने प्रभुके पादमूलमें श्रावकवत ग्रहण किये । बहुत समयतक प्रजाका पालनकर चित्रवेणी और पद्मावतीने भी मुनि एवं आयिका दीक्षाएं धारण की ।
कलिंगको ओरसे ही पुण्ड्र, वंग और ताम्रलिप्त आदि देशोंमें भी तीर्थंकर महावीरके समवशरणका विहार हुआ और वहाँकी जनताको अहिंसा-धर्मका उपासक बनाया । महावीरका समवशरण जिस स्थानपर जाता, उसी स्थानका
१. कथानकके लिये देखिये, चित्रवेणी पपावती परित तथा Dr. Kamata prasad
द्वारा लिखित Religion of Tirhankaras' {world jain mission, Ali
G. Jug. पृ० १५१. २. जैन सिद्धान्त-भास्कर, भाग १२, किरण १, पु. १६-२२.
२६० : तीर्थंकर महावीर और उनको आचार्य-परम्परा