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कलिंग : बोरघेणो और चित्रवेणीका प्रसग्रहण
तीर्थकर महाबीरका कलिंगदेशमें विहार हुआ। यह कलिंग स्य र्वी समुद्रतटपर तामलुकसे गंजम पर्यन्त व्याप्त था। इसकी उत्तरी सीमा गंगा नदीको स्पर्श करती थी। दक्षिणमें मध्य गंजमके उपरान्त घने वन फैले हुए थे। पूर्व में भारतीय महासागर था और पश्चिमी सोमा मध्यप्रान्तकी अमरकंटक पर्वतमाला तक फैली थी। दक्षिण कोसल या महाकोसल प्रदेश भी इसीके भीतर था। कलिंगको विकलिंगदेश भी कहा गया है, क्योंकि इसमें उत्कल, कंगोद और कोसल ये तीन देश सम्मिलित थे। कलिंगमें तीर्थकर महावीरके समवशरणका बिहार हुआ और कुमारीपर्वतपर समवशरण स्थित हुआ। कुमारीपर्वत आजकल उदयगिरि कहलाता है| डॉ० ज्योतिप्रसादने भी लिखा है-"तीर्थकर पार्श्वका विहार कलिंगदेशमें हुआ था। भगवान महावीर भी वहाँ पधारे थे और राजधानी कलिंग नगरके निकट कुमारीपर्वसपर उनका समवशरण लगा था। उपर्युक घटनाओंको स्मृतिमें उक्त स्थानपर स्तूपादि स्मारक बने थे और मुनियोंके निवासके लिये गुफाएं भी निर्मित हुई थी, जो खारवेलके समयके बहुत पहलेसे वहाँ विद्यमान थीं।"
सीर्थंकर महावीरके समय कलिंगदेशपर जितशत्रु नामका राजा राज्य करता था, जो महावीरके पिता राजा सिद्धार्थका मित्र और बहनोई था । इन्हींकी कन्या यशोदाके साथ महावोरके विवाहकी बात चली थी, पर महावीरने विवाह करनेसे इनकार कर दिया और वे आजन्म ब्रह्मचारी बने रहे। __ जब कलिंगनरेश जितशत्रुको तीर्थकर महाबोरके समवशरणके आगमनका समाचार मिला, तब वह प्रसन्नतापूर्वक जय-जयध्वनि करता हुवा कुमारीपर्वसपर धर्मसभामें सम्मिलित हुआ। महावीरके धर्मामतका उसपर अपूर्व प्रभाव पड़ा और उसकी आत्मा संसारके प्रपंचोंसे दूर हटकर कल्याणके हेतु मचल उठी। वह चेतन-आनन्दको खोजमें सलग्न होनेके लिये चिन्तन करने लगा! निजानुभूतिकी गहराईमें उतरते ही उसका मिथ्यात्व गल गया, मोह नष्ट हो गया और वह दिगम्बर-दीक्षा ग्रहण करने के लिये कृतसंकल्प हो गया । जितशत्रुने निम्रन्थ मुनि-दोक्षा ग्रहणकर कर्मक्षपणका प्रयास किया ।
१, महावीर जयन्ती-स्मारिका, सन् १९७३, पृ. ३९. २. हायो गुम्फा अभिलेख, पंक्ति १४. ३. भारतीय इतिहास एक दृष्टि, प्रथम संस्करण पृ० १८१. ४. वाब कामता प्रसाद जैन, भगवान महावीर, प्रथम संस्करण, प० १३३.
तीर्थकर महावीर और उनको देशमा : २५९