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जीवन्धरने आर्यनन्दी गुरुसे समस्त विद्याओं का अध्ययन किया । आर्यनन्दीने एक अपना आत्मवृत्तान्त जीवन्धरको सुनाया और इसी प्रसंगमें उससे यह भी कहा कि तुम सत्यधर महाराजके पो. और हार : उस नागारिने हड़प लिया है। जोवन्धरद्वारा लोध प्रदर्शित किये जानेपर उन्होंने एक वर्ष तक युद्ध न करनेकी प्रतिज्ञा करायी । राजपुरो नगरीके नन्दगोपी गायोंको एक दिन वनमें व्याधोंने रोक लिया । नन्दगोपने राजा काष्ठांगारसे प्रार्थना की कि गायें वापस दिलानेको व्यवस्था करें 1 काष्ठांगारने व्याधोंसे लड़नेके लिए संना भेजी, पर सेगा फूछ न कर सकी। फलतः नन्दगोपने नगरमें घोषणा करायी कि जो व्यक्ति भीलोंसे गायोंको छुड़ा लायेगा, उसे स्वर्णको सात पुत्तलियां दहेजमें देकर अपनी गोविन्दा नामक पुत्रीका विवाह कर दूंगा। जीवन्धर भीलोंसे गायोंको छुड़ा लाया और अपने मित्र पद्मास्यके साथ गोविन्दाका विवाह करा दिया।
राजपुरी नगरीका श्रीदत्त सेठ जहाजी बेड़ा लेकर व्यापारके लिए गया । वह सामान लेकर लौट रहा था कि उसका जहाज समुद्र में डूबने लगा। उसे वहाँ एक स्तुप मिला, जहाँ एक व्यक्ति छिपा हआ था, उसने कहा-"यह गान्धार देश है। यहां की नीलालोक नगरीमें गरुडबेग विद्याधर राजा रहता है। इसकी पुत्री मन्धवंदत्ता है। जन्मके समय ज्योतिषियोंने भविष्यवाणी की है कि राजपूरी नगरी में जो इसे वीणावादन कर पराजित करेगा, वही इसका पति होगा। आपका जहाज डूबा नहीं है, यह भ्रम है। आप गन्धबंदत्ताको अपने जहाजमें बैठाकर राजपुरी ले जाइये।" श्रीदत्तने गन्धर्वदत्ताको अपने जहाजमें बैठा लिया और राजपुरी में आ गया। यहाँ काष्ठांगारकी स्वीकृतिसे स्वयंवर योजना को गयी, जिसमें राजकुमारोंने वीणावादन किया । पर सभी राजकुमार गन्धर्वदत्तारो हार गये। अन्त में जीवन्धरने अपनी घोषवती चीणा बजायो और गन्धर्वदत्ताको पराजित कर उसके साथ विवाह किया।
वसन्त ऋतुमें जलक्रीडा सम्पन्न करने के लिए नगरवासियों के साथ जीवन्धरकुमार भी गया। वहाँ वैदिकोंके द्वारा घायल किये गये एक कुत्ते को उन्होंने 'णमोकार' मंत्र सुनाया, जिमसे उसने यक्ष-पर्याय प्राप्त को : कूत्तके जीव उस पक्षने अपने ज्ञानवलसे उपकारीको जान लिया, अत: वह जीवन्धरके समक्ष अपनी कृतज्ञता प्रकट करने आया । वह समय पड़नेपर सेवामें उपस्थित होनेका वचन देकर चला गया। इस उत्सवमें गुणमाला और सुरमंजरी नामकी दो सखियाँ मो सम्मिलित हुई थीं। उन्होंने 'स्मानीय चूर्ण' तैयार किये। उनके चूर्णांकी परीक्षा जीवन्धरकुमारने की और गुणमालाके चूर्णको श्रेष्ठ सिद्ध किया। इससे
२५६ : तीर्थकर महावीर और उनको आचार्य-परम्परा