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वीरसंघका स्वागत किया। तीर्थकरके समवशरणमें भव्यजीव धर्मामतका पान करने के लिए जाने लगे । जीवन्धर भी गन्धर्वदत्ता आदि देवियोंके साथ समवशरणमें प्रविष्ट हुए। ताथंकर महावीर के उपदेशस इतने अधिक प्रभावित हुए कि उन्होंने महारानी गन्धर्वदत्ताके पुत्र वसुन्धरकुमारको राज्य देकर नन्दाढ्य, मधुर आदि भाइयों और मामाके साथ दिगम्बर-दीक्षा धारण की । समयशरणमें पहुँचते ही जीवन्धरकुमारका मोह शान्त हो गया, मन निर्मल बन गया और सम्यक्त्व सुदढ हो गया। इस प्रसंगमें जीवन्धरकुमारका संक्षिप्त जोवनवृत्त देना भी अप्रासंगिक नहीं होगा।
हेमांगददेशको राजपुरीमें सत्यन्धर राजा अपनी रानी विजया सहित शासन करता था। राजा विषयासक्त हो अन्तःपुरमें अपना समय यापन करता था । अतः उसने काष्ठांगार नामक मन्त्रीको राज्यका अधिकारी बना दिया। रानी विजया गर्भवती हुई और उसे एक रात्रिके पिछले भागमें तीन स्वप्न दिखलाई पड़े । सत्यन्धरसे उसने स्वप्नोंका फल पूछा । प्रथम स्वप्नका अनिष्ट फल जानकर राजा कुछ सावधान हुआ और उसने एक मय राकृति यन्त्र बनाया। काष्ठांगारने एक दिन बगावतकर राजा सत्यन्धरको मारने के लिए सेना भेजी। राजाने वंश रक्षाके लिए गर्भवती महारानीको यन्त्रमें बैठाकर आकाशमें उड़ा दिया और स्वयं युद्ध करते करते मारा गया । चालकके अभावमें यन्त्र राजपुरीको श्मशान भूमिमें गिरा । रानीने वहीं पुत्रको जन्म दिया। पुत्रके पालन-पोषणका साधन न देखकर उस पुत्रको राजनामांकित मुद्रिका पहनाकर श्मशानके एक हिस्से में रख दिया ।
उस नगरीके सेठ गन्धोत्कटके यहाँ उसी दिन पुत्र जन्म हुआ, पर थोड़ी देरके भनन्तर उसकी मृत्यु हो गयी । फलतः वह मृतसंस्कारके लिए उस पुत्रको वहाँ लाया और यहीं उसे वह नवजात शिशु मिला । उसने उसे उठा लिया। पासमें छिपी विजयाने पुत्रको आर्शीवाद दिया-'जीव', अतः इस शब्दके आधारपर 'जोवक' या 'जीवन्धर' नाम रखा गया। गन्धोत्कटने घरपर जाकर पत्नीसे कहा-"तुमने जीवित पुत्रको मत कैसे घोषित कर दिया ।" सुनन्दा सेठानी पुत्रको प्राप्तकर बड़ी प्रसन्न हुई और अपना ही पुत्र समझ सावधानीपूर्वक पालन करने लगी। गन्धोत्कटने पुत्रप्राप्तिके उपलक्ष्यमें बहुत बड़ा उत्सव सम्पन्न किया। महारानी विजया पुत्र-व्यवस्थाके पश्चात् दण्डकवनमें तपस्वियोंके आश्रममें पहुँची । कुछ दिनोंके पश्चात् सुनन्दाको एक पुत्र और हुआ जिसका नाम 'नन्द' रखा गया | पाँच वर्षको अवस्थामें जीवन्धरका विद्यारम्भ संस्कार सम्पन्न हुआ।
तीर्थंकर महावीर और उनकी देशना : २५५