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सुरमंजरी रूठकर चली आयो और जीवन्धरकुमारसे विवाह करनेका अनुबन्ध किया । गुणमाला स्नानकर उत्सवसे लौट रही था कि काष्ठांगार के मदोन्मत हाथीने उसे घेर लिया। प्रियंवदा सखीको छोड़ अन्य सभी व्यक्ति भाग गये। जीवन्धरने हाथीको भगा दिया। गुणमालाका जीवन्धर के साथ विवाह भी हो गया ।
हाथीको ताड़ित करनेके कारण राजा काष्ठांगार जीवन्धरपर बहुत रुष्ट हुआ और उसे अपनी सभामें पकड़वाकर बुलाया । चन्वोत्कटने कुमारको सभा में उपस्थित कर दिया । राजा काष्ठांगारने उसके बधका आदेश दिया । कुमारने यक्षका स्मरण किया । यक्ष कुमारको चन्दोदय पर्वतपर ले गया। वहाँ उसने उनको तीन मन्त्र दिये और एक वर्ष में राजा होनेकी भविष्यवाणी की । जीवन्धरकुमार वहाँसे चलकर दबा जहाँ मानिसे बहुतसे हाथो जल रहे थे। कुमारने जिनेन्द्र-स्तवनद्वारा मेघवृष्टिकर दावाग्निको शान्त किया ! तीर्थवन्दना करते समय कुमार चन्द्रप्रभा नगरी में आया, यहाँ घनमित्रकी पुत्री पद्मासे विवाह किया |
चन्द्रप्रभा नगरीसे चलकर कुमार दक्षिण देश के सहस्रकूट चैत्यालय में आया और वहाँ चैत्यालय बन्द किवाड़ोंको अपने स्तुतिबलसे खोला, जिससे क्षेमपुरीके सुभद्र सेठकी पुत्री क्षेमश्री के साथ उसका विवाह सम्पन्न हुआ ।
क्षेमपुरीमें कुछ दिनों तक रहनेके पश्चात् कुमार जीवन्धर मायानगरी के समीप पहुँचा और वहां दृढ़मित्र राजाके पुत्रोंको धनुविद्या सिखलायी । राजाने प्रसन्न होकर अपनी कन्या कनकमालाका विवाह जीवन्धर के साथ कर दिया ।
क्षेमपुरीमें जोवन्धरका साक्षात्कार नन्दभाईसे हुआ। वह सुनाता है कि गन्धर्वदत्ताने अपने विद्याबलसे मुझे यहाँ भेजा है तथा वह गन्धर्वदत्ताका पत्र भी देता है । इसी समय पश्चास्य आदि मित्र भो कुमारसे मिलते हैं और दण्डकारण्य में माता विजया के निवास करनेका समाचार देते हैं । कुमार माताजोके दर्शन करता है और उन्हें अपने मामा के यहाँ भेज देता है । वह राजपुरी में लौट आता है और वहाँ सागरदत्तको कन्या विमलाके साथ विवाह करता है ।
कुमारका मित्र बुद्धिषेण कहता है- 'पुरुषोंकी छायासे घृणा करनेवाली सुरमंजरी के साथ विवाह करो, तभी तुम्हारी विशेषता मानी जा सकती हैं ।" कुमार यक्षद्वारा प्रदत्त विद्याबलसे वृद्ध ब्राह्मणका वेश धारणकर सुरमंजरीके तीर्थंकर महावीर और उनकी देशना : २५७
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