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वह 'स्व' को उपलब्धि और स्वनिष्ठ आनन्दका चिन्तन करने लगा-"जीवन महत्त्वपूर्ण है, उसका कोई विशिष्ट प्रयोजन है । यह आधि-व्याधिके दुःखों और क्लेशोंसे नष्ट होने के लिए नहीं है और न भोग-विलासके पंकमें लिप्त होने के लिए ही है । इसका महान उद्देश्य है । अतएव मुझे इस उद्देश्यकी पूर्ति के लिए प्रयास करना चाहिए।"
उसने इन्द्रभूति गौतम गणधरसे निवेदन किया-"प्रभो ! मैं घरमें रहकर ही अभी साधना करना चाहता हूँ। अतएव मुझे अणुव्रत और शिक्षावतोंके नियम देनेकी कृपा कीजिए । तीर्थकर महावीरके चतुर्विध संघमें 'श्रावक' भी एक संघ है । श्रावक-धर्मके अभावमें मुनिधर्मका निर्वाह नहीं हो सकता है।"
इन्द्रभूति गौतमने सुबाहुकुमारको तीथंकर महावीरके समक्ष श्रावकके द्वादश व्रतोंके नियम दिये।
कालान्तरमें एक बार मध्यरात्रि जाग जानेके कारण सुबाहुकुमारके मनमें यह संकल्प उठा कि वे राजा और राजकुमार धन्य हैं, जो दिगम्बर-दीक्षा ग्रहण कर आत्म-साधनापथपर विचरण करते हैं । अत्तः अबकी बार तीर्थंकर महावीरका समवशरण आनेपर में मुभिदीक्षा ग्रहण करूंगा।
महावीरका समवशरण पुनः हस्तिशीर्ष में आया और पुष्पकरण्डक उद्यानमें धर्मसभा हुई। राजा अदीनशत्र एवं सबाहुकुमार आदि भी धर्मपरिषद्में सम्मिलित हुए और सुबाहुकुमारने विलत होकर अपने पितासे नुनिदीक्षा धारण करनेकी अनुमति मांगी। अनुमति प्राप्त होते ही उसने दिगम्बरी-दीक्षा ग्रहण कर द्वादशांग-वाणीका अध्ययन आरम्भ किया। अनशन, ऊनोदर, बत्तिसंख्या, रसपरित्याग आदि बारहवतोंका आचरण करते हुए वह कर्मनिर्जरामें प्रवृत्त हुआ। सौगन्धिका नगरी' : अप्रतिहतकी जागी सषप्तचेतना
सौगन्धिका नगरीके समीप नीलाशोक उद्यान था, जिसमें सुकालयक्षका चेत्य था। महावीरके समयमें इस नगरीमें अप्रतिहत राजा राज्य करता था। इसकी महारानी सुकृष्णा थी । इनका पुत्र महाचन्द्र हुआ। महाचन्द्र अत्यन्त प्रतिभाशाली और निकाटभव्य था । यह आरम्भसे ही संसारसे विरक्त था। वह सोचता-"मनुष्य स्वयं अपने भाग्यका विधाता है। समाजमें ऊँच-नीच, आर्थिक संघर्ष एवं राजनीतिक दासताका अन्त आवश्यक है। मनुष्य अपनी आत्माका पूर्ण विकास कर सकता है और इस विकासका आधार अहिंसा है, जो जितना अहिंसक है, उसकी आत्मा उतनी ही विकसित है।"
उसने अपने मन में निश्चय किया कि तीर्थंकर महावीरके समवशरण में जाकर संयम ग्रहण करनेकी इच्छा व्यक्त करूंगा। १. विपाकसूत्र-पी० एल० वंद्य-सम्पादित, श्रु० २ ० ५, पृ० ८२.
तीर्थकर महावीर और उनकी देशना : २५३