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होगा। वह अभी अबोध है। अत: उसको शिक्षा-दीक्षा आपको अपने पुत्रके समान करनी होगी तथा राज्यशासनके संचालनमें भी सहयोग देना होगा।"
तीर्थंकर महावीरकी वाणीके सुननेसे प्रद्योतकी आत्म-परिणति निर्मल हो चकी थी, अतः उन्होंने रानी मगावतीकी सभी बातोंकी स्वीकृति प्रदान की। रानीने आर्यिका-दीक्षा ग्रहण की। मृगावती वैशालीनरेश चटेककी पुत्री था
और इसका विवाह कौशाम्बीनरेश शतानीकसे हुआ था। कहा जाता है कि शतानोक भो तीथंकर महावोरके उपदेशसे प्रभावित हुआ था, पर इसको मृत्यु रोगविशेषके कारण हो गयी थी।
इस नगरका सेठ बृषभसेन विपुल सम्पत्तिका स्वामी था। चन्दनाको प्रश्य इसीके यहाँ प्राप्त हुआ और यहीं पर महावीरका अभिग्रह पूर्ण हुआ तथा उन्ह न आहार ग्रहण किया। महाबीरको देशनासे प्रभावित होकर वृषभसेन अनेक व्यापारियों सहित मुनि बन गया। वत्सदेशकी कौशाम्बी नगरीमें तीर्थंकर महावीरका समवशरण कई बार आया था । हस्तिशीर्ष : अदीनशत्रुके पुत्र सुबाहुका व्रतग्रहण
संभवतः यह नगर कुरुदेशके पश्चिमोत्तर प्रदेश में कहीं अवस्थित था । इस नगरके बाहर पुष्पकरण्डक नामका उद्यान था, जहाँ कृतवनमालप्रिय यक्षका मन्दिर था । इस नगरमें अदोनश नामक राजा राज्य करता था । इसकी पट्टमहिषोका नाम धारिणीदेवी था। धारिणोदेवोने एक रात्रिके अन्तिम प्रहरमें स्वप्न में सिंह देखा । समय आनेपर उसे पुत्रलाभ हुआ और उसका नाम सुबाहु रखा।
सुबाहुकुमार जब युवा हुआ तो उसका विवाह पूष्पचला नामक कन्यासे सम्पन्न हुआ। एक बार तीर्थंकर महावीरका समवशरण विहार करता हुआ हस्तिशीर्षनगर में आया और नगरके उत्तर-पश्चिम स्थित उद्यानमें सभामण्डर निर्मित हुआ । देव, मनुष्य, पशु, पक्षी आदि सभी तीर्थंकरको वाणी सुननेके लिए आने लगे । राजा अदीनशत्रु भी समवशरण में गया और धर्मोपदेश सुनकर आनन्दित हुआ।
राजकुमार सुबाहु भी रथपर आरूढ़ होकर समवशरणमें सम्मिलित हुआ। परिषद्के सदस्य देशना सुनकर चल गये, पर सुबाहुकुमार वहीं स्थित रहा । १. विपाकसूत्र-(पी० एल० वैद्य सम्पादित ), श्रु० २ अ० ५, पृ० ७९-७८. २. श्रमण भगवान् महावीर : मुनि कल्याणविजय, १० ९८. २५२ : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा