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गोंडा-बहराइच जिलोंकी सीमापर 'सहेत महेत' नामसे बड़े विस्तार में बिखरे पड़े हैं। श्रावस्ती नगरीकी स्थापना श्रावस्त नामक सूर्यवंशी राजाने की थी । इस नगरी में संभवनाथ तीर्थंकरका जन्म हुआ था । महावीरका समवशरण चम्पासे श्रावस्तीको गया था । यहाँ उनकी देशना प्राणिमात्रको मात्मवत् समझना, अपने-परायेको समान दृष्टिसे देखना, आत्म-नियन्त्रण करना, अहिंसासंयम तपके महत्त्वको स्वीकार करना आदि तथ्योंपर प्रकाश डाल रही थी । श्रोतागण मन्त्रमुग्ध होकर तीर्थंकरके उपदेशामृतका पान कर रहे थे। जब कोशलाधिपति प्रसेनजितको तीर्थंकर महावीरके समवशरणका समाचार ज्ञात हुआ, तो वह भी भक्ति-विभोर हो गया। वह विचार करने लगा - " निष्कामभक्ति ही सुख-शांतिका साधन है । वीतरागकी उपासना करनेसे आत्मामें वीतरागता जागृत होती है। सच्ची सुख-शांति निराकुलतामें है । आकुलतासे क्रोध, मान, माया और लोभ आनंद वृत्तियोंका प्रादुर्भाव होता है । ये वृत्तियाँ हमारे मन में जितनी गहराई में प्रविष्ट होती जाती हैं, हमारा मन उतना ही अधिक अशांत हो जाता है। अतएव तीर्थंकर महावीरकी शरण स्वीकारकर आत्म-कल्याण में प्रवृत्त होना ही उपादेय है । "
प्रसेनजित भक्तिभावपूर्वक तीर्थकरके समवशरण में प्रविष्ट हुआ और भावविभोर होकर उनकी स्तुति करने लगा। उसने नियति या भाग्यवाद के संबंधमें अपनी शंकाएं उपस्थित कीं । भगवान्के दिव्योपदेशसे प्रसेनजितकी शंकाओंका निराकरण हुआ और इसे अपने पुरुषार्थपर विश्वास हो गया । देशनामें एकान्तरूपसे भाग्य एवं पुरुषार्थवादकी समीक्षा की गयी थी और अनेकान्तद्वारा भाग्य एवं पुरुषार्थका समर्थन विद्यमान था । प्रसेनजित तीर्थंकर महावीरका भक बनकर धर्मपुरुषार्थी हो गया। शंख भी तीर्थंकर महावीरका भक्त बन गया । कौशाम्बी : रानी मृगावती की दीक्षा एवं वृषभसेनका दिगम्बरस्व
तीर्थंकर महावीरका समवशरण विभिन्न जनपदोंसे होता हुआ, कौशाम्बी'में आया । उस समय कौशाम्बी संकटग्रस्त थी । उज्जयिनी के राजा चण्डप्रद्योतने अपनी विशालवाहिनीके साथ कौशाम्बीपर आक्रमण कर दिया था । उसके पास अनुपम सैन्यबल था । राजा उदयन अभी बालक था, अत: शासनका संचालन महारानी मृगावती कर रही थी। सभी भयभीत थे । अत्यधिक क्रोधी होनेके कारण ही उज्जयिनीनरेश चण्डप्रद्योत कहलाते थे। युद्धका कारण यह था कि वह रानी मृगावतीको अपनी पत्नी बनाना चाहता था । वासना
१. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, १०१८३१७६.
२५० : सीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा