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अतः वह चांडाल परिवार कांचनपुर चला गया । जिस दिन यह परिवार वहाँ पहुँचकर विश्राम कर रहा था, उस दिन बहके राजाका स्वर्गवास हो गया था । उसका कोई पुत्र नहीं था । अतः राजा निर्वाचन करनेके निमित्त अभिमन्त्रित अश्व छोड़ा गया । अवने करकण्डुकी प्रदक्षिणा को और उसके निकट ठहर गया । करकण्डु कांचनपुरका राजा बन गया और जब यह समाचार उस ब्राह्मणको प्राप्त हुआ, जिसने बाँस काटा था, तो वह करकण्डुको सेवामें उपस्थित हुआ और उससे चम्पा में एक ग्राम देनेका अनुरोध किया । करकण्डुने दधिवाहनके नाम एक पत्र लिखा और चम्पामें से कोई एक गांव उस ब्राह्मणको देनेका निवेदन किया तथा इसके बदले में काञ्चनपुरसे अन्य गांव देनेका आश्वासन दिया ।
दधिवाहन इस पत्र को पढ़कर अत्यन्त कुपित हुआ और कहने लगा"चांडाल - पुत्रका इतना साहस कि वह मुझे चम्पाके राज्यसे एक गाँव देनेके लिये लिखता है | अतः उसने स्पष्ट रूपमें ग्राम देने से इनकार कर दिया । " हुआ और दधिवाहनको
करकण्डु दानवाहुनका समाचार प्राप्त कर
उदण्डता समझकर चम्पापर आक्रमण करनेकी तैयारी की ।
करकण्डुने चम्पा नगरीको चारों ओरसे घेर लिया और दोनों नरेशों की सेना के बीच तुमुलयुद्ध होने लगा । पिता-पुत्र दोनों ही परस्पर में अपरिचित रहकर तीव्र वाण-वर्षा कर रहे थे। रानी पद्मावती को जब इस आक्रमणका समाचार मिला, तो वह पिता पुत्रका पारस्परिक परिचय करनेके हेतु वहाँ उपस्थित हुई । उसने महाराज दधिवाहन से हाथी द्वारा अपहृत किये जानेसे लेकर चम्पाआक्रमण तकको समस्त कथा कह सुनायी और पिता-पुत्रका परिचय कराया ।
परिचय प्राप्त होते ही युद्ध बन्द कर देनेकी घोषणा की गयी । राजा दधिवाहनको विरक्ति हुई और वह तोर्थंकर महावीरके समवशरण में उपस्थित हुआ । चम्पाका राज्यभार वह करकण्डुको सौंप चुका था । दधिवाहह्नने इन्द्रभूति गौतमसे निवेदन किया- "प्रभो ! मैं इस संसार के दुःखोंसे ऊब गया हूँ । अतएव मुझे शाश्वत सुख प्राप्तिका मार्ग बतलाइये। मैं दिगम्बर-दीक्षा ग्रहण करनेके लिये लालायित हूँ । अतएव शीघ्र ही मुझे दीक्षित कीजिये ।"
इस प्रकार राजा दधिवाहनते तीर्थंकर महावीरके समवशरण में दीक्षा वारण की । कालान्तरमें करकण्डु भी विरक्त होकर दीक्षित हो गया । श्रावस्ती : प्रसेनजितकी भक्ति
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कोशलदेशकी राजधानी श्रावस्ती थी । आजकल इस नगरीके खंडहर १.''''सावत्थी नयरी'' जियसत्तू राया - उपासगदसामो (पी० एल० वैद्य), पु०६९. तीर्थंकर महावीर और उनकी देशना : २४९