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कर लो पो। विजयसेनने जब तीर्थकर महावीरके मुखसे धर्मामृत सुना और आत्माके अहितकारक विषय-कषायोंका परिज्ञान हुआ. तो उसने विरत हो श्रावकके व्रत ग्रहण कर लिये । __इसो नगरमें सद्दालपुत्त नामक एक प्रसिद्ध कुम्भकार भी निवास करता था। जिसने तीन करोड़ स्वर्ण-मुद्राएँ मिट्टोके वर्तन बनाकर अर्जित की थी। इसकी पांच सौ दुकानें अनेक नगरोंमें चलती थीं। यह भारतका प्रसिद्ध शिल्पी था । महवीरके उपदेशसे प्रभावित होते ही इसके मोहका भंग हो गया और मुनिदोक्षा ग्रहण कर ली। इस प्रकार पोलासपुर में तीर्थंकर महावीरके समवशरण द्वारा अनेक प्राणियोंका कल्याण हुआ। कुछ व्यक्ति पोलासपुरको अवस्थिति मगध और विदेहके मध्य मानते हैं। इसमें सन्देह नहीं कि पोलासपुर उस समयका प्रसिद्ध नगर था । इस नगरमें तीर्थंकर महावीरका समवशरण कई बार बाया था। पम्पा : कुणिक अजातशत्र, वषिवाहन और करकण्डको दीक्षा
चम्पाको अंगदेशको राजधानी बताया गया है। तीर्थकर महावारका समव. शरण यहां मो आया था। यहाँके समय-समयपर होनेवाले कई राजा महावीरके समवशरणसे प्रभावित हुए हैं। तीर्थकर महावीरका समवशरण जब चम्पामें पहुंचा तो उस समय चम्पाका राजा कुणिक अजातशत्रु था । इसने भक्ति-भावपूर्वक महावीरकी वन्दना की। कहा जाता है कि आरम्भमें अजातशत्रु उदार और सहिष्णु था, पर बादमें देवदत्तके बहकानेसे उसको श्रद्धा बौद्धधमंकी ओर हो गयी। इसने जैनधर्मके प्रचार और प्रसारके लिए जो कार्य किए हैं, वे इतिहासमें अजर-अमर हैं।
वन्दना करनेके अनन्तर सम्राट अजातशत्रुने पूछा-"प्रभो ! विश्वके लोग लाभके हेतु ही कोई उद्योग करते हैं। साधु भो किसी अच्छे लाभके लिए ही घर छोड़ते होंगे? इस सम्बन्धमें संसारके विभिन्न विचारकोमें मत-भिन्नता है। कौन-सा मत सत्य है ? यह बतलानेकी कृपा कीजिए।" __उत्तरमें धर्मदेशना हुई—"राजन् ! यह सत्य है कि मनुष्यका उद्योग लाभके लिए होता है। परंतु लाभ दो प्रकारका है. लौकिक और पारलौकिक । लौकिक लाभ-घन,सम्पत्ति, पुत्र, स्त्री-विषयक हैं और यह नाशवान हैं। ये सब प्रकट पदार्थ हैं और पुद्गलांशोंसे इनका निर्माण हुआ है । इनके द्वारा शाश्वत सुख किसीको प्राप्त नहीं हो सकता है। इनमें स्वयं सुख है ही नहीं। बतएव साखु शाश्वत सुख प्राप्तिके लिए मोक्ष-पुरुषार्थकी साधना करते हैं।
पीपंकर महावीर और उनकी वेशमा : २४१