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ऋषभदेव आदि तथंकरोंके धर्मके आराधक थे। जिनेन्द्रप्रभुकी पूजा और अर्चामें विशेष भाग लेते थे। इनके धनदत्त, धनभद्र, उपेन्द्र, सुदत्त, सिंहभद्र, सुकुम्भोज, अकम्पन, सुपतंगक, प्रभंजन और प्रभास ये दश पुत्र थे।
सिंहभद्र वृजिगण-सेनाका पराक्रमी सेनापति था। चेटक चोर, पराक्रमी और रणकुशल था | जब चेटकको वैशालीमें महावीरके समवशरण के पधारनेका समाचार प्राप्त हुआ तो वह परिवार-सहित तीर्थकर महावीरको बन्दना करनेके लिये गया। उसने महावीरके मुलसे सुना--"मनुष्य सहस्रों दुन्ति शत्रुओंपर सगर खारे विजय प्रा कर सकता है, पर अपने ऊपर विजय प्राप्त करना कठिन है, बाह्य शत्रुओंसे लड़ना जितना सुकर है अन्तरंग काम, क्रोधादि शत्रुओंसे लड़ना उतना ही कठिन है । शत्रुओंके परास्त करनेसे सुखशान्ति प्राप्त नहीं हो सकती । सुख-शान्ति तो अहिंसामय वातावरणमें ही उपलब्ध होती है।" महावीरने जिनदत्त और सुरदत्तका इतिवृत्त सुनाकर संसारविरक्तिको ओर उन्हें आकृष्ट किया। महावीरने आध्यात्मिक उत्क्रान्तिका विवेचन करते हए गुणस्थान और मागणाओंका स्वरूप बतलाया। चेटकके अधीन नौ लच्छवी, नी मल्ल इस प्रकार काशी-कोशलके अठारह गणराजा थे। इनके चेटक नाम होनेका कारण यही था कि ये शत्रुओंको अपना चेटक-सेवक बनाते थे। हरिषेण-कृत कथाकोशमें इनके पिताका नाम केक और माताका नाम यशोमतो बताया गया है।
महावीरके उपदेशसे चेटक विरक्त हुआ और वह उनका भक्त हो गया तथा उनके चरणोंमें दाक्षा ग्रहण कर ली । कहा जाता है कि चेटकने दिगम्बर-दीक्षा धारणकर विपुलाचल पर्वतपर तपश्चरण किया। चेटकके मुनि होनेपर वैशालीका आधिपत्य उनके पुत्रको प्राप्त हुआ।
किसी समय सेनापति सिंहभद्र भी तीर्थकर महावीरकी बन्दनाके लिये समवशरणमें पहुंचा और विनयपूर्वक चोला-"प्रभो! लिच्छवी-राजकुमार शाक्य मुनि गौतमबुद्धकी प्रशंसा करते हैं, उनके मतको अच्छा बताते हैं, इसका क्या कारण है ?"
१. उत्तरपुराण ७५.३. २. बथ वनविवे बेमे विशालीनगरीनर: । अस्यां ककोऽस्य भार्यासीत् यशोमितिरिनप्रभा ।।
--बृहत्कथा-कोश. पृ० ८३, इलोक १६५.. ३. सो चेडवो साबो ?--अ [वश्यकचूणि, उसराद्ध, पत्र १६४.
तीर्थकर महावीर और उनको देशना : २४३