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देवने अनेक देशोंमें विहारकर उन्हें धर्मसे युक्त किया था, उसी प्रकार अन्तिम तीर्थ कर महावीरने भी वैभवके साथ विहारकर मध्यके काशी, कौशल, कौशल्य, कुसन्ध्य, अस्वष्ट, शाल्व, विगतं, पांचाल, भद्रकार, पटम्बर, मौक, मत्स्य, कनीय, शरसेन एवं कार्थक नाम : राम-ततके कलिंग. कुरुजांगल, कैकेय, आत्रेय, काम्बोज, बाल्हिक, यवनश्रुति, सिन्धु, गान्धार, सूरभीरु, दशेरुक, बाड़वान, भारद्वाज और वाथतोय देशोंमें एवं उत्तर दिशामें तार्ण, प्रच्छाल आदि देशोंमें विहारकर उन्हें धमकी ओर उन्मुख किया था। तीर्थंकर महावीरका यह समवशरण-विहार विभूतिसहित होता था, जिसके कारण मानवताका विशेष प्रचार हुआ। महावीरने वैशाली, वणिय-ग्राम, राजगृह, नालन्दा, मिथिला, भद्रिका, अलामिका, श्रावस्ती और पावामें विशेष रूपसे धर्मामृतकी वर्षा की थी। विपुलाचल और वैभारगिरिपर महावीरकी दिव्यध्वनि कई बार हुई थी। अनेक राजा-राजकुमार और राजकुमारियोंने आत्म-कल्याणका मार्ग ग्रहण किया। __ मगवती-सूत्रमें तीर्थकर महावीरके नालन्दा, राजगृह, पणियभूमि, सिद्धार्थनाम, कूर्मग्राम आदि स्थानोंमें पधारनेका उल्लेख है। उवासगदसासूत्रमें वणिजनाम, चम्पा, वाराणसी, आलभी, काम्पिल्यपुर, पोलासपुर, राजगृह और श्रावस्ती में तीर्थकर महावीरके समवशरण-विहारका कथन आया है। वाणिज-ग्रामकी धर्मसभामें आनन्द श्रावक और उसकी भार्या शिवानन्दा इनके उपासक बने थे। चम्पामें श्रावक कामदेव और श्राविका भद्रा; वाराणसीमें श्रावक चूलनिप्रिय एवं सूरदेव तथा श्राविका श्यामा और धन्या; आलभीमें श्रावक चुल्लशतक और श्राविका बहुला, कम्पिल्यपुरमें कुण्डको लिय और पुष्पा दम्पति, पोलासपुरमें सर्दलमित्र और अग्निमित्रा, राजगृहमें श्रावक महाशतक और विजय एवं श्रावस्तीमें नन्दिनीप्रिय और शलतिप्रिय उपासक बने थे। ___ महावीरके वचनामृतने ऊंच-नीच और जाति-पांतिके भेद-भावको मिटा. कर मानवताकी प्रतिष्ठा की थी। हम यहाँ तीर्थंकर महाबीरके समवशरणविहारका संक्षिप्त निर्देश प्रस्तुत करेगें। वैशाली : चेटक एवं सेनापति सिंहका धर्म-श्रवण __ राजगृहसे भगवान महावीरके समवशरणने वैशालीमें विहार किया । यहाँके गणनायक महाराज चेटक थे, जिनकी रानीका नाम सुभद्रा था । चेटक
धौ णायोजयद् वीरो बिहरन् विभवान्वितः ।
यथव भगवान् पूर्व वृषभो भब्यवत्सलः ।।-हरिवंशपुराण ३।३-७ २४२ : तीर्थकर महावीर और उनको आचार्य-परम्परा