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मति देनी पड़ी। अभयकुमारने अपनी मातासे भी अनुमति प्राप्त कर ली । अतः वह गौत्तम गणधर के निर्देशानुसार तीर्थंकर महावीरके समवशरण में पहुँचा और बहाँ दिगम्बर- दीक्षा ग्रहण कर ली । श्रेणिक भी पुत्र के दीक्षित होनेसे प्रसन्न हुआ और उसने राजगृहमें उत्सव सम्पन्न किया ।
अभयकुमारने दिगम्बर-दीक्षा धारण कर उग्र तप किया । उसने विकार और वासनाओंका निरोधकर कर्मोंकी निर्जरा की । साक्षात् तीर्थंकर महावीरका उपदेश श्रवणकर अभयकुमारने अपने कर्मोकी अनन्तगुणी निर्जरा आरम्भ की। उन्होंने चार घातियाकमको ननुकर वी. राग हो । अर्हन्तपद प्राप्त किया । समवशरण में जीव और कर्म के सम्बन्धमें ज्ञात कर अपनेको शुद्ध बुद्ध और ज्ञानस्वरूप बनाया ध्यानके प्रभाव से अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन, अनन्तसुख और अनन्तवीर्य की उपलब्धि की । जो आत्मा बन्धका कर्त्ता है, वही आत्मा बन्धनसे मुक्ति प्राप्त करनेवाला है । पर इस मुक्तिकी प्राप्ति तभी होती है, जब अपने भीतर के परमात्मासे साक्षात्कार हो जाता है । इस परमात्मा पदके प्राप्त होते हो आत्मा सुख-दुःख, पुण्य-पाप आदिसे मुक्त हो जाती है ।
आर्यिका संघको प्रमुख आचार्या : चन्दना
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महावोरके संघ में मुनि और श्रावकोंके साथ बारिका और श्राविमयोंके भी संव थे । वीरसंघको व्यवस्था महिलाओं के सहयोग के बिना सम्भव नहीं थी । महावीरके संघ में छत्तीस हजार आर्यिकाएँ और तीन लाख श्राविकाएँ थीं। महाराज चेटककी पुत्री चन्दना कोशाम्बी में व्रात्य जीवन व्यतीत कर रही थी और वह वीर तीर्थप्रवत्तं नक्की आशा लगाये हुई थी । जब महावीरका धर्म प्रवर्तन आरम्भ हुआ, तो चन्दना समववरण भूमिमें पहुँची और अनुरोध करने लगी- "स्त्रीपर्यायी माया प्रसिद्ध है । इस मायाका विनाश आर्यिका बनकर साधनाद्वारा नारी भी कर सकती है । पुरुष-पर्याय हो या नारी-पर्याय, सभी बन्धन हैं। सोनेका बन्धन लोहे के बन्धन से अच्छा नहीं हो सकता है। दोनों ही प्रकारके बन्धन व्यक्तिकी स्वतन्त्रतामें बाधक है । जो भव्य हैं, अपना और परका हित चाहते हैं, वे किसी से द्व ेष नहीं रखते, किसीको बुरा नहीं कहते । व्यक्तिके शुभ और अशुभ-संस्कार ही द्रष्टव्य हैं। अच्छे संस्कार उपादेय होते हैं और बुरे संस्कार हेय । जो व्यक्ति अपने संस्कारोंका निर्माण करता है, वही साधनाका अधिकारी बनता है 1"
चन्दना के अनुरोधका समर्थन इन्द्रभूति गौतमने भी किया और कहा" संघका संचालन प्रमुख विदुषी आर्यिका के अभाव में संभव नहीं है । अतः चन्दना के विरक्त भावोंका समादर होना आवश्यक है ।"
चन्दनाको आर्यिका दीक्षा ग्रहण करनेकी अनुमति प्राप्त हो गयी । उसने
२३० : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा