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द्वादश अनुप्रेक्षाओंका चिन्तन किया और पञ्चमुष्टि लोंचकर श्वेत शाटिका धारण की।
चन्दनाकी दीक्षा होते ही हर्ष-ध्वनि हुई और देवोंने भी इसका अनुमोदन किया। चन्दना तीर्थकर महावीरके आर्यिका-संघकी गणिनी बन गयी । घेलना : भक्ति और त्याग
वीरसंघकी साध्वी-रमणियों में देलनाकी भी गणना की गयी है। इनका धर्माचरण दैनिक जीवन में अनुस्यत था। चेलनाने हो सम्राट श्रेणिक बिम्बसारको महावीरका अनुयायी बनाया था । इनका भवन मनि और त्यागियोंकी चरण-रजसे पवित्र होता रहता था। यह चारों प्रकार का दान देती, देवार्चन करती और स्वाध्यायद्वारा अपने अन्तरंगको पावन बनाती धर्ममार्गसे च्यत होनेवाले व्यचियोंके स्थितिकरणम सलग्न रहतो ।
एक समयकी घटना है कि नेलना द्वारापेक्षण कर रही थी। सौभाग्यवश एक कृशकाय द्विमासोफ्वासी तपस्वी विशाख चर्याक लिए पधारे । रानीने भक्तिपूर्वक मुनिराजको पड़गाहा और आहार-दान देने की तैयारी करने लगी । इसी समय उसने देखा कि कोई अदृश्य शक्ति मुनिराजपर उपसर्ग कर रही हैउनका इन्द्रिय-वर्द्धन होता जा रहा है। यदि मुमिराज अपने इस इन्द्रिय बद्धनका देखते तो अन्तराय मानकर बिना आहार लिए लौट जाते । अत: चेलनाने मुनिराजका निरन्तराय आहार सम्पन्न करानेके हेतु ऐसा उपाय किया, जिससे मुनिराजको उक्त उपसर्गका अनुभव ही नहीं हुआ ।
मुनिराज आहार-ग्रहणकर विपुलाचलपर्वतपर गये और ध्यानस्थ हो गये । उन्होंने शुक्लध्यान आरम्भ किया, जिससे धतियाकर्म नष्ट होने लगे। गुणस्थानारोहणके क्रमसे उन्होंने सयोगकेवली गुणस्थानमें पहुँचकर अनन्तचतुष्टयको प्राप्ति की और केवल ज्ञान उपलब्ध किया । सूर, असुर, नर, नारी, सभी केवलीको वन्दनाके लिए आने लगे । बेलना भी वहाँ उपस्थित हुई और उसने केवलीसे उस परोक्ष उपसर्गका कारण पूछा।
केवली-"मुनि होनेके पहले मैं पाटलिपुत्रका राजकुमार था मेरा नाम विशाख था । मेरी पत्नी कनकधी अत्यन्त रूप-लावण्ययुक्त थी। मेरा विवाह हुए अभी एक महीना भी नहीं हुआ था कि मैने अपने बालसखा मुनिराज मुनिदत्तको देखा। वे अपनी चर्याके लिए भ्रमण कर रहे थे। मैंने भक्तिभावपूर्वक मुनिदत्तको आहार दिया। मुनिराजने मुझे संसारका स्वरूप बतलायातथा आत्मोत्थानके लिए प्रेरणा दी। महाराजके उपदेशसे मुझे बड़ी शान्ति
तीर्थकर महावीर और उनकी देशना : २३१