________________
उसके मनमें उत्पन्न हुई विरक्ति और सबल हो गयी । वह सम्यग्दर्शन, सम्यरज्ञान और सम्यकचारित्रकी प्राप्तिके लिये लालायित हो गया । उसका मन आत्मनिष्ठासे भर गया तथा जाम धि निर्मल और उज्वल हो गयी ! अतः उसने प्रार्थना की--"प्रभो ! मुझे दीक्षा देकर आत्म-साधनाका अवसर दीजिये।"
इन्द्रभूति गौतम गणधरने अभयकुमारको सम्बोधित करते हुए कहा"तुम्हारी तभी दिगम्बर-दीक्षा हो सकती है, जब तुम अपने माता-पिताकी अनुमति प्राप्त कर लो। यतः तुम राज्यके एक उत्तरदायी पदपर प्रतिठित हो।"
अभयकुमार गौतम गणधरके अदेशानुसार अपने पितासे अनुमति प्राप्त करने के लिए राजसभामें उपस्थित हुआ ! उसने सिंहासनासीन श्रेणिकको बड़ी श्रद्धासे प्रणाम किया । अपनी इच्छा पिताके सम्मुख व्यक्त करनेके पूर्व भूमिकाके रूपमें तत्त्वोंका विवेचन किया। उसके सारगर्भित विवेचनको सुनकर श्रेणिक और राजसभाके अनेक विद्वान आश्चर्य चकित हो गये । ____ अभयकुमारने अपनी भूमिका समाप्त करनेके अनन्तर अपना मन्तव्य भी पिताके समक्ष प्रस्तुत किया। उसने विनीत शब्दोंमें निवेदन किया-"पूज्यवर ताप्त ! संसारके ये विषय-सुख मुझे नीरस प्रतीत हो रहे हैं । राजनीतिक दाँवपेंचाऔर षड्यन्त्र मझे अब नागफनी जैसे प्रतीत हो रहे हैं। मेरी अन्तरात्मा ज्ञानज्योतिसे आलोकित हो गयी है। अतएव अब में दिगम्बर-दीक्षा ग्रहण कर महावीरके संघमें सम्मिलित हो आत्मकल्याण करना चाहता हूँ।" ___ अभयकुमारके उक्त विचारोंको सुनकर सम्राट श्रेणिक स्तब्ध हो गये । वे नहीं चाहते थे कि अभयकुमार घर-द्वार, राज्य, धन, दौलत आदि छोड़कर मुनिपद ग्रहण करे। वह अभयकुमारको समझाते हुए कहने लगे-"वत्स ! मगधका यह विशाल राज्य तुम्हारे बुद्धिकोशलसे ही चल रहा है । तुम्हारे कारण राज्यको सीमाका-विस्तार हुआ है और कई राजाओंने अधीनता प्राप्त की है अभी तुम्हारी वय ही क्या है ? दीक्षाके लिये अवसर आने दीजिये, तब दीक्षाग्रहण करने में किसी प्रकारकी कठिनाई नहीं है। अभी मेरा मन तुम्हें अनुमति देनेके लिये तैयार नहीं हैं।"
अभयकुमार-"तात ! अब सत्कर्ममें मुझे रस आ गया है, आनन्दको उपलब्धि हो गयी है और संसारके विषय-सुख नीरस प्रतीत हो रहे हैं। अतएव दीक्षा ग्रहण करनेके लिये अवश्य अनुमति दीजिये।" श्रेणिकने जब अभयकुमारफा वृढ़ निश्चय ज्ञास्त कर लिया, तो उन्हें अनु
तीर्थकर महागीर और उनकी देशना : २२९