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व्यक्तियोंको प्रभावित किया । जो भी उनके समवशरण में सम्मिलित होता, वही उनसे प्रभावित हो जाता। उनका यह समवशरण विहार और मगधके विभिन्न प्रदेशों में परिभ्रमण करता रहा। तीर्थंकर महावीरकी दिव्यध्वनिने लोक- हृदयको एक अपूर्व दिव्यता प्रदान की और जन-जनके ज्ञानचक्षु खोल दिये । अज्ञानके बादल फट गये और ज्ञानका सूर्योदय हो गया । रुढ़ियाँ, दुराग्रह एवं हठवादिता समाप्त होने लगी । इनके समवशरण के प्रभावसे संघर्ष समाप्त हुए और शान्तिकी जलधारा प्रवाहित हुईं।
अभयकुमार
अभयकुमार अपने बुद्धिकौशल के कारण अपूर्व ख्याति प्राप्त कर चुके थे । उनका प्रत्युत्पन्नमतित्व अनुपम था। बड़ी से बड़ी समस्याओं का समाधान चुटकियों में कर दिया करते थे । ये शान्तप्रकृतिके तो थे ही, पर एकान्तप्रिय भी थे। ये निरन्तर चिन्तनमें ही लगे रहते थे और गूढ तत्त्व चर्चायें भी किया करते थे। तत्त्व-सम्बन्धी बड़ी से बड़ी शंकाएँ तत्त्वजिज्ञासु उनसे करते और बातों ही बातों में उनका समाधान कर देते थे । मेधावी अभयकुमार संसारकी स्वार्थपरताओं और छल छिद्रोंसे ऊब गये थे तथा शान्तिका मार्ग प्राप्त करनेके लिए सचेष्ट थे । रोहा चोरके हृदय परिवर्तनको घटनाका प्रभाव उनके हृदयपर बहुत गहरा पड़ा था और ये सत्योपलब्धिके लिए सचेष्ट थे ।
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तीर्थंकर महावीरका समवशरण विपुलाचल से इधर-उधर ग्राम और नगरोंमें हुआ करता था । यह एक प्रकारसे चलता-फिरता विश्वविद्यालय था और जहाँ भी होता जनकल्याणका अमृतवर्षण करता । समवशरण के प्रभावसे चारों ओर बहुत दूर तक करुणा और मैत्रीकी दुन्दुभि बजने लगी । लोकमानस उनके अभिनन्दनके लिए पलक पांवड़े बिछाने लगा । भारतकी अन्तरात्मा निर्मल हो गयो । इतिहासका कालुष्य घुल गया और उज्ज्वलताकी लेखनी द्वारा अहिंसा एवं सत्यके पृष्ठोंपर भारतका नया इतिहास लिखा जाने लगा ।
महावीरका समवशरण पुनः तीसरी बार राजगृहमें अनुमानतः ई० पू० ५३० - ३२ में हुआ तथा उनके उपदेशामृतकी चर्चा सर्वत्र व्याप्त हो गयी । जनसाधारण के साथ सेठ साहूकार और सामन्त भी समवशरण सभा में सम्मि लित होने लगे ।
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अभयकुमार भी समवशरण में दिव्यध्वनि सुनने के लिए उपस्थित हुआ । वे विरक्त तो पहले से ही थे, पर तीर्थंकर महावीरके वीतराग प्रवचनको सुनकर उनका वैराग्य कई गुना बढ़ गया। वे सोचने लगे - "मनुष्य जीवनकी उपयोगिता
तीर्थंकर महावीर और उनकी देशना २२७