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________________ हार चुराया है । फलतः श्रेणिक बिम्बसार ने विवश होकर वारिषेणको अपराधी घोषित किया और उसे मृत्यु दण्डको बाशा दी । चाण्डाल वारिषेण को लेकर श्मशान भूमि में पहुंचे और इसे बघस्थलपर बड़ा करके उसपर शस्त्रहार करना चाहा पर यह क्या चाण्डलोंके शस्त्र हो नहीं उठ रहे थे। उन्होंने अनेक प्रयत्न किये, पर वे सभी विफल रहे । सहसा वारिषेणपर अकाशसे पुष्पवर्षा होने लगी। चारों ओर यह वृत्तान्त बिजली की शक्तिके समान व्याप्त हो गया । जनताके झुण्ड के झुण्ड वारिषेणके दर्शनार्थं उमड़ पड़े । श्रेणिक बिम्बसार भी रानी चेलना सहित वहाँ उपस्थित हुए और कहने लगे - " वत्स ! मैं पहले हो यह जानता था कि तुम निरपराध हो, पर मैं क्या करता ? मैं न्यायके आसनपर था और था अपने कर्तव्यसे विवश | भूल जाओ पिछली बातोंको । अब चलो, घर लौट चलो। यह तुम्हारे सत्यकी विजय है ।" वारिषेण लोटकर घर न गया। उसने उत्तर दिया- "घर कौन-सा घर ? मेरा कोई घर नहीं । न में किसीका पुत्र हैं और न मेरा कोई पिता है । ये लौकिक सम्बन्ध है । यह समस्त जगत प्रपंच है । सब कुछ नश्वर है । मैं सब कुछ त्यागकर तीर्थंकर महावीरकी शरण में जाऊँगा और मुनिजीवन व्यतीत करूंगा ।" वारिषेणके उक्त विचारोंको सुनकर श्रेणिक विम्बसार अत्यन्त प्रसन्न हुए । महारानी चेलना और बिम्बसार दोनोंने ही पुत्रको दीक्षा ग्रहण करनेकी अनुमति दे दी । वारिषेण तीर्थंकर महावीरके समवशरण में आया और इन्द्रभूति गौतम गणधर को अपने मुनि बनने की इच्छा प्रकट की । वारिषेणका धर्म-सौरभ महावीरके पादपद्मों में विकसित हुआ । जिस प्रकार पावस- कालमें मेघ-पटल जलकी वर्षा करते हैं, उसीप्रकार तीर्थकर महावीरकी बाणोकी अमृत वर्षा भी होती थी और त्रस्त भव्य जीव इस वाणीका पानकर आनन्दानुभव प्राप्त करते थे | धर्मदेशनाके श्रवण से परिणामों के परिवर्तन में विलम्ब नहीं होता था । जो भी तोर्थंकर वाणीका श्रवण करते वे व्रत-उपवास ग्रहणकर आत्म-कल्याण में प्रवृत्त हो जाते । वारिषेण भी तीर्थंकर महावीर के सम्पर्कसे आत्म-साधक बन गये । पुरानी स्मृतियाँ: नयो व्याख्याए एक दिन वारिषेण चर्याके हेतु पोलासपुरकी ओर जा रहे थे कि उन्हें राजमंत्री का पुत्र सोमदत्त, जो उनका बालसखा था, मिला । मूनि वारिषेणको यंकर महावीर और उनको देवना: २२३
SR No.090507
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size14 MB
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