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ज्मेष्टपुत्र होनेके कारण तुम्हीं राज्यके अधिकारी हो, अतः राज्यसुखका उपभोग किये बिना तुम्हें दीक्षा धारण नहीं करनी चाहिए।'
उपर्युक्त कथनसे प्रभावित हो श्रेणिक कहने लगा-"वत्स ! तुमने यदि दिगम्बरी दीक्षा ग्रहण करनेका निश्चय कर लिया है, तो कोई बात नहीं। पर मेरा एक अनुरोध स्वीकार करो तुम ज्येष्ठ पुत्र हो, अतः एक दिनके लिए राज्य-शासन स्वीकार करो, तदनन्तर दीक्षा ग्रहण करना।"
मेधकुमारने पिता थेणिकका मादेश स्वीकारकर एक दिनके लिए मगधका राज्यशासन ग्रहण किया और बड़ी सतर्कना "वं कुशलतापूर्वक राज्यका संचालन किया। इसके द्वारा की गयो राज्यव्यवस्थाने श्रेणिकको आश्चर्य चकित कर दिया। एक अनुभवी सम्राट् जिस प्रकार राज्यशासनकी व्यवस्था करता है, उसी प्रकार मेषकुमारने राज्यको व्यवस्था की। मन्त्रिवर्ग भी उसकी बुद्धि एवं राजनीतिज्ञताको देखकर प्रभावित था।
जब दिन समाप्त हो गया तो श्रेणिकने मेधकुमारसे प्रश्न किया कि अब क्या विचार है ? श्रमण-दीक्षा ग्रहण करोगे अथवा राज्य-संचालन? मेघकूमारने विनीत भावसे उत्तर दिया-सास ! मैं अपने निश्चयपर अटल हूँ। मुझे राज्य-सुख नीरस प्रतीत हो रहा है। इन भयंकर विषय-भोगरूपी सौकी फुफकारसे में जला जा रहा हूँ। अतएव अब मुझे शीघ्र ही दीक्षा ग्रहण करनेकी अनुमति मिलनी चाहिए।"
श्रेणिकको मेघकुमारके दृढ़ निश्चयका बोध हो गया । अतः उसने प्रसन्नतापूर्वक दीक्षा धारण करनेकी अनुमति प्रदान की। ___ माता-पितासे अनुमति प्राप्तकर मेधकुमार अपनी आठ पत्नियोंके मध्य दीक्षाकी स्वीकृति लेनेक लिए उपस्थित हुआ । उसने अपनी पत्नियोंसे मात्ता पिताकी अनुमति प्राप्तिकी चर्चा की और कहा-"तीर्थकर महावीरकी देशना सुननेसे मेरे हृदयको कालिमा दूर हो गयी है। मेय हृदय चन्द्रमाके समान निर्मल और घवल हो गया है । सत्यकी वास्तविकता और संसारको असारताका चित्र नेत्रों के समक्ष साकार हो उठा है। अतएव अब आप लोग भी मुझे आत्म-कल्याण करनेके लिए अनुमति दीजिए।"
पत्नियां कहने लगीं-"नाथ! हम लोग आपके वियोग में जीवित भी नहीं रह सकेंगी। आपके यहाँसे चले जानेके पश्चात् हमारे प्राण भी आपके साथ ही चले जायेंगे । शरीरका चलना सो हमारे हाथमें नहीं है, पर प्रामोंका चलना तो हमारी इच्छाके अधीन है। आप जानते ही हैं कि नारीके लिए पति ही गत्ति है, पत्ति ही शरण है और पति ही सर्वस्व है। पतिके न रहने पर नारीका २१६:तीपंकर महावीर और उनकी बाचार्य परम्परा