________________
सितामें वीतरागताका गुणात्मक परिवत्तंन हो गया है । विगत विलासी-जीवनका स्मरण आते ही मेरा मन पश्चात्तापसे भर जाता है । अतएव आप महानुभाव मुझे दीक्षा ग्रहण करनेकी अनुमति प्रदान कीजिए; जिससे मैं तीर्थंकर महावीरको शरणमें जाकर व्रत ग्रहण कर सकूँ ।" ___ श्रेणिक मेघकुमारकी उदासीनता और उक्त भावनाको अवगत कर अत्यंत आश्चर्य चकित हुए और उन्हें इस बातकी चिन्ता हुई कि मेघकुमारके दीक्षित होनेसे त्रुटि आयेगी और शासन-व्यस्था सम्यकपसे नहीं चल पायेगी। वह सोचने लगे_ "मेषकुमार सुकुमार प्रकृतिके हैं, इनसे क्या कठोर दिगम्बर-दीक्षाका निर्वाह हो सकेगा? तपस्या करना बड़ा कठिन है । क्षुधा, तृष्णा, शीत, उष्ण आदिकी बाधाओंको सहन करना सरल नहीं है। इन्द्रिय और मनका निग्रह करने के हेतु बड़े साहस और धैर्यको आवश्यकता है । अतः मेघकुमार दिगम्बर मुनिके असिधारा-व्रतका पालन किस प्रकार कर सकेगा ?"
बहुत सोच-विचार करनेके पश्चात् श्रेणिकने मेघकुमारको सम्बोधित कर कहा-"वत्स ! त्याग और संयमके कठोर मार्गका तुम अनुसरण कर सकोगे? अभी तुम्हें घरमें रहकर ही आत्म-साधना करनी चाहिए । इसके साथ चिन्तन, मनन, प्राणिमात्रकी हितैषिता एवं सर्वप्राणि-समभावको उदात्तवृत्तियोंको भी आत्मसात् करना चाहिए | परिग्रह और ममताके घटने या नष्ट होनेपर ही गृहत्याग करना उचित होगा।"
मेघकुमार--"पूज्यवर तात ! आपका उक्त कथन यथार्थ है । पर मैंने यह अनुभव कर लिया है कि पाप कभी सुखका कारण नहीं बन सकते | इनके सेवन. से अन्तरात्मा कलुषित हो जाती है और व्यक्ति अपने निज स्वरूपको भूले रहता है। यह मोहोदयका परिणाम है कि आपके मुखसे इस प्रकारको बातें निकल रही हैं। सात्विक वृत्तिको प्रत्येक समझदार व्यक्ति सुखप्रद मानता है। पापका सेवन करनेवालेको लोक, परलोकमें सभी प्रकारकी यातनाएँ भोगनो पड़ती हैं। अस: मेरा निश्चय अटल है। आप संयम ग्रहण करनेकी अनुमति दीजिए।" ___ मेघकुमारके उक्त कपनको सुनकर माताको ममता उमड़ पड़ी और वह कहने लगीं-"वत्स ! तुम मेरी आँखोंके तारा हो । तुम्हारे विना में कैसे प्राण धारण कर सकूँगी । क्या मछली जलसे विमुक्त होनेपर जीवित रह सकती है ? अतः मांका बाग्रह स्वीकार कर तुम्हें अभी गृहवास ही करना चाहिए ।
तीर्थकर महावीर और उनकी देशना : २१५