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का वृत्त उसी अवस्था तक है। जब तक वह मौवधर्मावलम्बी रहा था। जैनधर्मको ग्रहण करनेके पश्चात्की घटनाओंका उल्लेख बौद्धसाहित्यमें नहीं मिलता है ।
सुप्रसिद्ध इतिहासज्ञ विसेन्ट स्मियने 'ऑक्स फोर्ड हिस्ट्री ऑफ इण्डिया' में श्रोणिकका निर्दश किया है तथा इनके राज्य-विस्तारका भी वर्णन दिया है।' श्रीकाशीप्रसाद जायसवालने बिहार रिसर्च सोसाइटीके जर्नल भाग एकमें बताया है कि श्रेणिकका राज्यकाल ५१ वर्षका था। कौशाम्बीके परन्सप शतानीक और श्रावस्तीके प्रसेनषित इनके समकालीन राजा थे। श्रीजयचन्द्र विद्यालंकारने अपने 'भारतीय इतिहासकी रूपरेखा' प्रन्यमें श्रेणिकका विशेष वर्णन किया है। इन्होंने बौद्ध एवं जैन ग्रन्थोंके आधारपर मगध साम्राज्यका सर्वप्रथम शासक श्रेणिकको ही स्वीकार किया है। बताया गया है कि चेटक, बिम्बसार आदि राजाओंके समकालीन महात्मा बुद्ध थे। श्रेणिकका उत्तराधिकारी अजातशत्रु हुमा, जिसने अपने राज्यका बहुत विस्तार किया । ___डॉ० रमाशंकर त्रिपाठीने लिखा है-"बिम्बसार एक सामान्य सामन्त भट्टियका पुत्र था और उसका विरुद सेनिय अथवा श्रेणिक था। पहले तो उसकी राजधानी भी प्राचीन गिरिधाशमा बादरें जगले पो नासाको सदि राजधानी बसाकर उसने उसका 'रामगृह' नाम सार्थक किया। विम्बसारने आरम्भमें अपने प्रभावको वैवाहिक सम्बन्धोंकी नीतिसे बढ़ाया। उसकी प्रधान महिषी कोशलदेवी राजा 'पसेनदि'की भगिनी थी; दूसरी रानी चेलना विख्यात लिच्छवि राजा 'चेटक' की कन्या थी और सीसरी रानी क्षेमा मद्र (मध्य पंजाब) की राजकुमारी थी। इन विवाहोंसे न केवल बिम्बसारका समसामयिक राजकुलोपर प्रभाव विदित होता है, वरन् यह भी सत्य है कि इन्होंकी पृष्ठभूमिपर मगधके प्रसारको अट्टालिका रूड़ी हुई । उदाहरणतः केवल कोशलदेवीके विवाहदहेजमें ही काशीको एक लाखकी वार्षिक आय मगधको प्राप्त हुई । बिम्बसारने अपनी विजयोंसे भी राज्यका विस्तार किया। अंगके राजा ब्रह्मदत्तको परास्त कर उसके जनपद-राज्यको मगधमें मिला लिया" । श्रेणिक : प्रधान घोता
तीर्थकर महाबीरके समवशरणका वैभव अनिर्वचनीय था। मुनिराज यमघरके उपदेशसे और महारानी चलनाके कार्यों द्वारा हृदय परिवर्तित होनेसे श्रेणिक विपुलाचलपर स्थित समवशरण में प्रधान श्रोता थे। वे इन्द्र द्वारा लाये गये
? »xford History of India P. 45. २ Journal of Bihar Research Society VIP.J14.
३ प्राचीन भारतका इतिहास, सन् १९५६, बनारस, पृ०७३-७४. २१० : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्पर।