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ज्ञान आपकी चेतनाके कण-कणमें छाया हुआ है। आप दर्शन, न्याय, तर्क, ज्योतिष और आयुर्वेदके मर्मज्ञ विद्वान् हैं । मुझे एक गाथाका अर्थ समझमें नहीं आ रहा है । अतः उसका अर्थ ज्ञात करने के लिये में आपकी सेवामें उपस्थित हुआ हूँ । यदि आप आदेश दें, तो मैं उस गाथाको आपके समक्ष प्रस्तुत करूं । ____ इन्द्रभूति गौतम ब्राह्मणवटुकरूपधारी इन्द्रके विनीत भावसे बहुत प्रसन्न हा । उसने अनुभव किया कि आगन्तुक वृद्ध में ज्ञानको पिपासा है। वह नम्र और अमुशासित भी है । अतः इसकी जिज्ञासा पूर्ण करना मेरा कर्तव्य है। इन्द्रने नम्रतापूर्वक कहा :
पंचेव अत्यिकाया छज्जीव-णिकाया महब्वया पंच।
अठ्ठयपवयण-मादा सहेउओ बंष-मोक्सो य'। इन्द्रभूति-"मैं इस गाथाका अर्थ तभी बतलाऊँगा, जब तुम इसका अर्थ ज्ञात हो जानेपर मेरे शिष्य पारेको ६ स्वीकार करो."
इन्द्रभूति बहुत समय सक गायाका अर्थ सोचता रहा । पर उसको समझमें कुछ नहीं आया । अतएव वह इन्द्रसे कहने लगा-"तुमने यह गाथा कहाँसे सीखी है ? किस ग्रन्थमें यह गाथा भायी है ?
ब्राह्मणवेशधारी इन्द्र-"मैंने यह अपने गुरु तीर्थकर महावीरसे सीखी है। पर वे कई दिनोंसे मोनावलम्बन लिये हुए हैं। इसी कारण इस गाथाका अर्थ में उनसे नहीं जान पाया । आपका यश वर्षोंसे सुनता चला आ रहा है और आपकी प्रखर प्रतिभाका मैं प्रशंसक हूँ । अतएव इस गाथाका अर्थ सात करने के लिये आपकी सेवामें उपस्थित हुआ हूँ।"
इन्द्रभूति समझ न सके कि पञ्चास्तिकाय क्या हैं ? छः जीवनिकाय फोन से है ? पाठ प्रवचनमात्रिकाएं क्या वस्तु हैं ? इन्द्रभूसिको जीवके अस्तित्व के
१. षट्खण्डागम, धवला, पु. ९, पृ० १२९ में उपत । २. उक्त गाथाके समकक्ष संसातमें भी निम्नलिखित पच उपलब्ध है:
कास्यं द्रव्यषट्कं नवपदसहितं जीवषट्र काय-लेश्याः । पञ्चान्ये पास्तिकाया प्रत-समिति-गति-शान-बारित्रभेदाः ॥ इत्येतन्मोषमूल त्रिभुवनहितः प्रोक्समहगिरीशैः । प्रत्येति श्रद्दधाति स्पृशति च मतिमान् यः स वै शुद्ध दृष्टिः ।।
-तत्त्वार्थसूत्र, श्रुतभक्ति नोकर महावीर और उनकी देशना : १८७