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सिर्थञ्चगति, एकेन्द्रिम, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रियरूप पार जातियों, नरकगति, नरकगत्यानुपूर्वी, तिग्गति, तियंगत्यानुपूर्वी, आतप, उद्योत, स्थायर, सूक्ष्म, साधारण इन सोलह कर्मप्रकृतियोंको नष्ट किया। महावीर शुक्लध्यानकी साधनाद्वारा अनिवृत्तिकरण नामक गुणस्थानके प्रथम भागमें अवस्थित रहे । पुनः इसी गुणस्थानके द्वितीय भागमें चारित्रधातक आठ कषायोंको, तुत्तीय भागमें नपुंसकवेदको, चतुर्थ भागमें स्त्रीवेदको, पंचम भागमें हास्यादि षट्को, षष्ठ 'माग पुरुषवेदको, सप्तम भाग संज्वलन कोषका, अष्टम भागमें संज्वलन मानको और नवम भागमें संज्वलन मायाको क्षीण किया। अनन्तर दशम गुणस्थानको भूमिपर आरोहित हो सूक्ष्मसंज्वलन लोभका विनाश किया।
इस प्रकार समस्त मोहनीय कर्मको नष्टकर बारहवें क्षीणकषाय गुणस्थानका आरोहण किया। इस बारहवें गुणस्थानके दो समयोंमेंसे उपान्त्य समयमें निद्रा और प्रचला इन दो कर्मप्रकृतियोंको तथा अन्त समयमें पांच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण और पांच अन्तराय इन चौदह कर्मप्रकृतियोंका नाश किया । इस प्रकार द्वादश गुणस्थान तक वेसठ कर्मप्रकृतियोंका विनाशकर त्रयोदश गुणस्थानका यारोहण किया।
इस गुणस्थानारोहणसे महावीरकी शुभ्रता और उज्ज्वलता सर्वत्र प्रकट हो रही थी । घातियाकोंकी ४७ और अघातियाकमकी सोलह प्रकृतियाँ कुल मिलाकर वेसठ प्रकृतियाँ विगलित होनेसे कैवल्य-सूर्यका उदय हो गया । महावीरकी सौम्य मुद्रामें सर्वशता तरंगायित हो रही थी। कर्मशत्रओंने आत्मार्पण कर दिया था और शान-प्राचीपर कैवल्य-भास्कर उदित हो चुका था । जिस प्रकार सूर्योदय होनेपर सर्वत्र प्रकाश व्याप्त हो जाता है, उसी प्रकार कैवल्योदय होनेपर दिव्य तेज व्याप्त हो गया था । ___ अनन्त सौख्यकी अनुपम विभूतिसे घराका कण-कण मुस्कुरा उठा और अस्त मानवता त्राणके हेतु आशान्वित हो गयी । राग-द्वेषके विकल्प शान्त हो चुके थेबोर आत्माने निर्विकल्पक स्थितिको प्राप्त कर लिया था । समसाके समक्ष विषमताका अस्तित्व समाप्त हो गया था । ___ महावीरको केवल्यबोध या सस्यकी उपलब्धि जिस दिन हुई उसका उल्लेख करते हुए आचार्य यतिवृषभने लिखा है
वइसाहसुद्धदसमी मघारिक्सम्मि वीरणाहस्स । रिजुकूलणदीतीरे अवरोहे केवलं गाणं ।
-ति० ४।१७०१ तीर्थकर महावीर और उनकी देशना : १७४