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वैशाख शुक्ला दशमी (२३ अप्रैल ई०पू० ५५७) का शुभ दिन था, जिस दिन महातपस्यी महावीरको केवलज्ञान उत्पन्न हुआ । उस दिन अपराह्न काल और मधा नक्षत्र था । ऋजकुला नदीका पावन सट था। जम्भिका गांव निकट था । शालिवृक्षके नीचे ध्यानमग्न होकर क्षपकश्त्रेणीका आरोहण करते हुए घातिकोकी ४७ और अघातिकर्मोकी १६ कुल ६३ प्रकृत्तियोंको निरस्त करके महावीरने कैवल्य उपलब्ध किया था। कैवस्यप्राप्ति-स्थान : विभिन्न मान्यताएं
इस कैवल्य-प्राप्ति-स्थानके सम्बन्धमें विद्वानोंमें विवाद है :--
बाबू कामताप्रसादजीने झरियाको जम्भिक गाँव माना है। आपका अभिमत्त है कि प्राचीन लाटदेशका विजयभूमि प्रान्त वर्तमान विहारके अन्तर्गत छोटानागपुर डिवीज़नके मानभूमि और सिंहभूमिमें है । श्रीनन्दलाल डे भी झरियाको ही जुम्भिक गांव मानते हैं । यहाँकी बराकर नदी ही प्राचीन ऋजुफूला है । इस कथनमें एक ही बात विचारणीय है वह है भगवान्की केवलज्ञान-प्राप्तिका ममि होना मागविगार गोयलय शितान्ते समय यहाँकी भूमिसे प्रथम बार पत्थर निकलता है ! अतः यह भूमि यथार्थमें वनभूमि है।
आगम-साहित्यके भौगोलिक निर्देशानुसार इस गांवको वनभूमिमें होना चाहिये । श्वेताम्बर आगम-साहित्यमें जम्भिक गांवकी स्थिति लाटदेशमें मानी गयी है।
मुनि श्रीकल्याणविजयजी इस मामको स्थितिके विषयमें लिखते हैं :"म्भिक गांवको अवस्थितिपर विद्वानोंका ऐकमत्य नहीं है । परम्पराके अनुसार सम्मेदशिखरसे दक्षिणमें बारह कोसपर दामोदर नदीके पास जो जम्मिय गांव है, वही प्रचीन जम्भिक गाँव है। कोई सम्मेदशिखरसे दक्षिण-पूर्व में लगभग पचास मीलपर आजी नदीके पासवाले जमगामको प्राचीन जम्भिय गांव बताते हैं। हमारे मान्यतानुसार जम्भिक गांवकी अवस्थिति इन दोनों स्थानोंसे भिन्न स्थानमें होनी चाहिये, क्योंकि महावीरके विहार-वर्णनसे अम्भिय गांव चम्पाके निकट कहीं रहा होगा।" मौलिक विरोध
बाबू कामताप्रसादद्वारा अनुमानित स्थान शरिया प्राचीन जम्भिय या जुम्भिक गाँव नहीं है । इस स्थानको ऋजुकूला नदीके किनारे होना चाहिये।
१. बाबू कामताप्रसाद : भगवान् महावीर ।
२. श्रमण भगवान महावीर, पृ० ३७० । १७८ : तीर्थकर महावीर और उनका आचार्य-परम्परा