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घरका द्वार खुला हुआ था। तभी महावीर उस ओरसे निकले। सुभद्राने बन्दनाको फोज लिये को कुछ हार न मासे लिये कह बैठी थी ।
महावीरके निकट आते ही उसकी बेड़ियाँ टूट गयीं और उनके अभिग्रहके अनुसार द्वारके मध्य में स्थित होकर सूपमें रखे बाकुलोंसे उनको पड़गाहने लगी | महावीर चन्दनाकी ओर बढ़ आये। उन्होंने आहार स्वीकार कर लिया । राजा शतानीक, सुगुप्त मंत्री, वृषभदत्त और सेठकी पत्नी सुभद्रा आदि सभी चन्दनाके भाग्य की प्रशंसा कर रहे थे । नर-नारियोंके झुण्ड के झुण्ड चन्दन के दर्शन के लिये दौड़ पड़े और उसके चरणोंकी धूलि अपने मस्तकपर लगाने लगे। राजमार्ग ठसाठस भरा था और चारों ओर जय-जयकारकी तुमुलध्वनि हो रही थी ।
वन्दनाको वन्दना
आज चन्दना के साथ कोदोंके भी भाग्य खुल गये और कौशाम्बी कृतार्थं हो गयी । उसके जन्म-जन्मके पातक शिथिल पड़ गये । चन्दनाको आत्मशक्तिका बोध हुआ । उसकी आत्माके बन्धन क्षीण हो गये और शीलका उपहार मिल गया। यह दृश्य इतना अलौकिक और अद्भुत था कि चन्दन की प्रशंसा हर व्यक्तिको जिह्वापर विराजमान थी। भारतीय नारीत्व अमर हो गया था मोर चन्दन के सतीत्वका उदाहरण आदर्श रूप में उपस्थित था ।
दशों दिशाओंके द्वार खुल चुके थे और घन्दनाकी आरती के लिये दिग्दिगन्त तैयार था | भारतीय नारीत्वको एक उज्ज्वल ऊँचाई प्राप्त हुई थी । चन्दना की बेड़ियाँ बशीर्वाद बन चुकी थीं ।
चन्दनाका मिलन
कौशाम्बीकी राजमहिषी मृगावतीको जब यह समाचार ज्ञात हुआ, तो वह भी चन्दना दर्शनार्थं द्वारपर जा पहुंची। उसे क्या पता था कि चन्दना कोई और नहीं, उसकी ही छोटी बहन है। जब उसने चन्दनाको देखा, तो उसकी आँखो में शोक और हर्ष के आँसू छलक आये । शोकके आंसू इसलिये गिरे कि चन्दनाको राजपुत्री होनेपर भी दासीका जीवन व्यतीत करना पड़ा और हर्षा इसलिये प्रादुर्भूत हुए कि उसकी बहन चन्दनाके हाथोंसे महावीरने आहार ग्रहण किया । उसने उपस्थित जन समुदाय के समक्ष चन्दनाका परिचय प्रस्तुत किया और राजभवन में चलनेके लिये अनुरोध किया !
वृषभदत्तकी पत्नी सुभद्रा चन्दना के पैरोंपर गिर गयी । उसकी आँखें सजल हो गयीं और मुखपर पश्चात्तापका गहरा भाव उत्पन्न हो गया। वह कह रही थी- "बहन मुझे क्षमा करो | मैंने तुम्हारे साथ घोर अन्याय किया है । मेरे
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तीर्थंकर महावीर और उनकी देशना १७१