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वह अपने तीखे बाक्वाणों द्वारा उसके हृदयको छेदती तथा अनेक प्रकारको जली-केटी सुनाती। चन्दना करती तो क्या करती ? वह अशुभ कर्मोदयका विपाक समझकर सब कुछ सहन करती हुई नगरसेठके घर पड़ी रहती।
दिन बीतते गये और चन्दना बड़ी होतो गयी। युवावस्थाके पदार्पणने उसके शारीरिक सौंदर्यको कई गुना बढ़ा दिया। सेठकी पत्नी सुभद्राका संदेह दिनोंदिन बढ़ता जा रहा था । संदेहका भूत
एक दिनकी बात है कि नगरसेठ वृषभदत्त मध्याह्न कालमें तेज धूपमें से लौटाथा । चन्दना उसके पैर धुला रही थो। उस समय उसके बाल विखरकर नोचेकी ओर जमीनको छूने लगे और मुहेपर छा गये। वृषभदत्तने सहज ममतावश अपने हाथसे उन बालोंको ऊपर कर दिया। जब सुभद्राने इस दृश्यको देखा तो उसका मन आशंकाओंसे भरने लगा। उसे यह निश्चय हो गया कि नगरसेठ वृषभदत्त चन्दनासे प्रेम करता है। अतएव वह चन्दनाको अपने धरसे निकालने और उसे विद्रप करनेका अवसर बढ़ने लगी | सेठके रहते हए उसके भयसे सुभद्रा कुछ नहीं कर पाती थी। ___ अन्तमें एक दिन सुभद्राको ऐसा अवसर मिल गया। सेठ वृषभदत्त बाहर गया हुआ था । उसने नाईको बुलाकर सर्वप्रथम चन्दनाको केशराशिको उसके सिरसे उत्तरवा दिया । के केश चन्दनाके सौंदर्यको अभिवृद्धिमें बहुत बड़े कारण थे। इसपर भी उसे संतोष न हुआ, तो चन्दनाके पैरोंमें बेड़ी डलवाकर उसे तलघरमें बन्द करवा दिया । चन्दनाको बड़ी ही दुर्गति थी। वह एकप्रकारसे जीवन-मृत्युकी घड़ियाँ गिन रही थी।
वृषभदत्त बाहरसे लोटा । चन्दनाको न देखकर उसके मनमें विभिन्न प्रकारको आशंकाएं उत्पन्न होने लगीं। उसने दास-दासियोंसे चन्दनाके विषयमें पूछा, पर किसीका भी साहस न हुआ कि सेठको वास्तविक स्थितिका गरिज्ञान कराये । बहुत तलाश करनेके उपरान्त वृषभदत्तकी एक दासीने डरते-डरते पूरी बात बतलायी। वह शीघ्र ही तलघरमें पहुंचा और चन्दनाकी उक्त स्थिति देखकर रो पड़ा । उसकी ममताके बादल बरसने लगे । वह शीघ्र ही चन्दनाको वहसि निकालकर बन्धनमुक्त करना चाहता था । अतएव बेड़ियां काटने के लिये वह लोहारको बुलाने चला गया । खुल गये बन्धन, मिला रस्नमय उपहार
संयोगकी बात कि महावीर छह महीनेतक निराहार रहकर अहारके हेतु नगरमें दुर्गम अभिग्रह लिये धूम रहे थे । चन्दना बेड़ियोंमें पड़ी हुई थी। तल१७० : तीर्थंकर महावीर और उनकी माचार्य-परम्परा