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यह अवश्य ही कोई छप्रवेशधारी चोर है। अतएव उसने महावीरको फांसी देनेका आदेश दिया। अधिकारियोंने उन्हें फाँसीके तख्तेपर चढ़ा दिया और तुरस्त गलेमें फाँसीका फंदा लगाया। पर तख्ता हटाते ही फाँसीका फंदा टूट गया । दूसरी बार फांसी लगायी, फिर भी वह टूट गया । इस प्रकार सात बार महावीरके गले में फांसी डाली गयी और सातों ही बार फांसीका फंदा टूटता गया। इस घटनासे कर्मचारी भयभीत और आतंकित हुए । अत: वे सोसलिनरेशके पास इन्हें ले आये और पूर्वोक्त घटनाका स्पष्टीकरण प्रस्तुत किया । तोसलि-नरेश महावीरके इस प्रभावसे प्रभावित हुआ और क्षमा याचना करते हुए उन्हें मुक्त कर दिया। __संगमदेवने अभी भी पराजय स्वीकार नहीं किया। अतः वह इन्हें उपसर्ग देन लिया और अमित सिधी हसा सोपरिको महावीर सिद्धार्थपुर गये और वहाँ भी संगमकदेवके षड्यन्त्रके कारण इन्हें चोर समझकर पकड़ लिया गया। इसी समय कौशिक नामक एक अश्वव्यापारी वहां आया। वह महावीरको पहचानता था। अतः उसने इनका परिचय देकर इन्हें बन्धनमुक्त किया । सिद्धार्थपुरसे महावीर वृजगाँव (गोकुल) पहुंचे।
वृजग्राममें उस दिन कोई उत्सव था | घर-घर क्षीरान बना था । महावीर भिक्षाचर्याक हेतु वृजगायमें पहुंचे । संगमक वहाँ पहलेसे ही उपस्थित था। वह अहारको अनेषणीय करने लगा। जब महावीरको संगमके षड्यंत्रका पता लगा, तो वे तुरंत ही उस गाँवसे बाहर चले गये। संगमकने महावीरको ध्यानविचलित करनेके लिये अनेकानेक उपसर्ग किये, पर वह उन्हें विचलित न करसका।
संगमकको महावीरपर उपसर्ग करते हुए लगभग छहमास व्यतीत होने जा रहे थे। वह उन्हें ध्यानच्युस करनेके लिये अगणित विघ्न भी कर चुका था, पर वह अपने इस दुष्कृत्य में सफल नहीं हो पाया। संगमदेवका पराजय और चरण वंदन
उसने अवधिज्ञान द्वारा महावीरको मानसिक वृत्तियोंकी भी परीक्षा ली । पर उसने अवगत किया कि महावीरका मनोभाव अधिक सुदढ़ है। वे आत्माके अमरत्यके निकट पहुँच रहे हैं। संयम और शीलकी अहर्निश वृद्धि हो रही है। अतः अपनी पराजय स्वीकार करते हुए महाबीरसे निवेदन किया-"प्रभो ! आपके सम्बन्धमें बो कहा गया था, वह अक्षरशः सत्य है। आप सत्यप्रतिक हैं और उपसर्ग-विजेता है। विश्वमें कोई भी ऐसी शक्ति नहीं है, जो आपको बात्मा
तीपंकर महावीर और उनकी देशना : १६३