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महावीरको विभिन्न प्रकारकी यातनाएं दीं। उन्हें मारा-पीटा और बांधकर नगरमें ले जाने लग। महावीर इन सबको सहन करते हुए भी मौन थे। वे पूर्वोदयका कर्म-विपाक समझकर सब कुछ समतापूर्वक सहन कर रहे थे। इसी समय भूतिलक नामक एक इन्द्रजालिक वहां आया। वह महावीरको पहचानता था। अतः उसने ग्रामवासियों के समक्ष महावीरका परिचय प्रस्तुत किया। जब ग्रामवासियोंको यह ज्ञात हुआ कि ये महाराज सिद्धार्थके पुत्र महावीर हैं, और कैवल्यसिद्धि के लिये ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए तपश्चरण कर रहे हैं, सो वे अपने कृत्योंके लिये लज्जित हुए। ग्रामीणोंने साधु-वेशधारी उस व्यक्तिकी भी तलाश को, जो उन्हें महावीरके पास ले गया था। पर उसका कहीं पता नहीं चला। अन्तमें ग्रामवासी इस निष्कर्षपर पहुंचे कि इस घटनामें कोई रहस्य अवश्य है। मोसलि-नरेश द्वारा चरण-वन्दन
सोसलिसे तीर्थकर महावीर मोसलि पधारे और वहां उद्यानमें ध्यानस्थित, हो गये। यहां भी संगमकने महावीरपर घोर होनेका अभियोग लगवाया जिससे राजपुरुषों द्वारा उन्हें अनेक प्रकारके उपसर्ग दिये गये। राजपुरुष महावीरको पकड़कर मोसलि-नरेशके पास ले गये। राजसभामें राजा सिद्धार्थका मित्र सुमागध नामक राष्ट्रिय बैठा हुआ था। इन्हें देखते ही वह कहने लगा-"राजन् ! यह चोर नहीं हैं । यह तो सिद्धार्थके राजकुमार महावीर हैं। ये अपनी आत्म-शक्तियोंका विकास करनेके लिये तपश्चरण कर रहे हैं। इन जैसा घोरतपस्वी और परीषहजयी अन्य कोई नहीं है। अतः इनपर चोर होनेका सन्देह करना बिल्कुल निराधार है।"
सुमागधके इन वचनोंको सुनकर मोसलि-नरेशको पश्चात्ताप हुआ और उन्हें बन्धन-मुक्त कर उनके चरणों में गिर गया।
संगमक इतनी जल्दी अपना पराजय स्वीकार करनेको तैयार नहीं था। अतः उसने उपसर्ग देनेकी अपनी प्रक्रियाको और अधिक तीव्र बनाया। जब' महावीर तोसलि उद्यानमें ध्यानस्थ थे, उस समय संगमकने इनके पास चोरीके अस्त्र-शस्त्र रख दिये। इन अस्त्र-शस्त्रोंको देखकर लोगोंने इन्हें चोरसमझा और तोसलि-पत्तिके पास इन्हें पकड़कर ले गये। बदभुत चमत्कार : फांसीका फंवा टूटा
सोसलि-पत्तिने महावीरसे कई प्रकारके प्रश्न पूछे, पर महावीर मौन रहे । अब तो उसे और उसकी सलाहकार समितिको यह विश्वास हो गया कि १६२ : तीर्थकर महापीर मोर उनकी आचार्य-परम्परा