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सेला उपनाः सहणकर एक शिन पर मानभित हो गये । महावीरके इस निश्चल और निनिमेष ध्यानको देखकर लोग प्रशंसा करते हुए कहते कि"ध्यान और धैर्यमें तीर्थंकरका कोई समकक्ष नहीं है । वे आत्माके अमृतत्वको प्राप्त करने के लिये अहर्निश ध्यानकी साधना करते हैं। मनुष्य तो क्या, देव भी उन्हें विचलित नहीं कर सकते हैं। उपसर्ग और परीषहोंका ऐसा विजेता इस कालमें अन्य नहीं है।" संगमदेवका परीक्षण और विभिन्न उपसर्ग
संगम नामक देवने विचार किया कि महावीरको ध्यानसे विचलित कर मैं उनकी परीक्षा करूगा । ऐसा कौन व्यक्ति है, जिसे में विचलित न कर सकूँ। मेरे समक्ष किसीका भी धैर्य अटल नहीं रह सकता है। अतः में जाकर महावीरको ध्यानसे च्युत करता हूँ। यह निश्चयकर संगमकने पेढ़ाल उद्यानमें स्थित पोलास चैत्यमें जाकर महावीरको ध्यानसे विचलित करने का उपक्रम किया। उसने विविध प्रकारके कष्टदायक बीस उपसर्ग किये, पर महावीरका हृदय इन उपसर्गोंसे रंचमात्र भी क्षुब्ध नहीं हुआ।
पोलास चैत्यसे चलकर महावीरने बालुकाकी ओर विहार किया। वहाँसे सुभोग, सुच्छेत्ता, मलय और हस्तिशीष आदि ग्रामोंमें विहार करते हुए तोलि पहुंचे। संगमकदेवने इन नामोंमें भी महावीरको विभिन्न प्रकारके कष्ट दिये । मारन-ताड़नजन्य बाधाएं पहुंचायीं, पर महावीर अपनी साधनामें अविचलित रहे।
एक समय महावीर तोसलि गाँवके उद्यानमें ध्यानारूढ़ थे। संगमकदेव साधुरूप धारणकर गाँवमें गया और एक भवनमें सेंध लगानेका कार्य करने लगा। ग्रामवासियोंने उसे चोर समझकर पकड़ा और मारने लगे। संगमक कहने लगा-"मुझे मत मारो। मैं तो निरीह और निरपराधी हूँ। अपने गुरू की आज्ञाका पालन करनेके लिये ही मुझे यह कार्य करना पड़ा है 1 जैसा गुरु कहते हैं, वैसा मैं करता हूँ। गुरुका आदेश चोरी करने के लिये हुबा और मैं यहाँ आकर सेंध लगाने लगा।"
लोगोंने पूछा तुम्हारे गुरु कहाँ हैं ? और क्या करते हैं ? उसने कहा-"वे उद्यानमें ठहरे हुए हैं और नेत्र बन्दकर ध्यान कर रहे हैं।"
ग्रामवासी उसके साथ उद्यानमें गये, तो महावीरको संगमकके बताये हुए नियमानुसार ध्यानस्थ देखा । अज्ञानी नागरिकोंने चोर समझकर महावीरपर आक्रमण किया और बांधकर नगरमें ले जानेकी तैयारी की। उन लोगोंने
वीर्षकर महावीर और उनकी देशना : १६१