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किया । मन जैसे-जैसे शान्त और निष्कम्प होता गया, त्यों-त्यों स्थिरता बढ़ती गयी ।
जब चातुर्मास समाप्त हुआ तो महावीरकी सावधि योग साधना भी समाप्त हो गयी और पारणाके हेतु उन्होंने राजगृहसे विहार किया ।
नववर्ष -साधना : सामायिक- मित्र
महावीर विहार करते हुए राजगृहसे लाढ़ देशकी ओर गये ओर वहाँस वज्रभूमि, शुद्धभूमि एवं सुम्हभूमि जैसे आदिवासी प्रदेशोंमें पहुँचे। यहाँपर महावीरको ठहरने योग्य स्थान भी नहीं मिला। न यहाँ कोई चैत्य ही ऐसा था, जिसमें रहकर ध्यान कर सकें और न ऐसा कोई शून्य मन्दिर ही था. जिसमें सामायिकको सिद्धि कर सकें । अतएव महावीरने ग्राम और नगरके बाहर उद्यानमें खड़े होकर सामायिक किया |
महावीरकी सामायिक-क्रिया आत्मोपलाब्धिका साधन थी । दुष्टजन महावीरकी हँसी उड़ाते, उनपर धूलि - पत्थर फेंकते, गालियाँ देते, अवमानना करते और शिकारी कुत्ते छोड़ते थे । पर इन समस्त कष्टोंको सहन करते हुए भी वे अपने सामायिक में पूर्णतया तल्लीन रहते। उनके परिणामोंमें शान्ति थी । क्रोधादि कषायों का प्रादुर्भाव नहीं होने देते। प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अपनेको नियन्त्रित रखते थे ।
उपवास -पर- उपवास
चातुर्मास आनेपर महावीरने एक वृक्षके नीचे नवम चतुर्मास ग्रहण किया । चार महीने का उपवास स्वीकार कर सामायिककी सिद्धिके हेतु वे कायोत्सर्ग और ध्यानमें प्रवृत्त हुए। इन्द्रिय और मनकी दीवालोंको मेदकर आत्माके सानिध्य में रहना आरम्भ किया । शरीरकी चंचलता और शरीर के ममत्वका पूर्ण विसर्जन किया । प्रवृत्ति और ममत्व ये दोनों शरीर एवं मनमें तनाव उत्पन्न करते हैं तथा इन्हींके द्वारा अनेक प्रकारको शारीरिक एवं मानसिक व्याधियाँ उत्पन्न होती हैं । अतएव महावीरने उक्त दोनोंका निरोध किया ।
महावीर इहलोक -भय, परलोक भय, अत्राण-भय, आकस्मिक भय, मृत्युभय आदि सात प्रकार के भयोंसे रहित थे । अतः दुष्टजनोंके उपद्रवका उनके ऊपर कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ता था । वे जितेन्द्रिय और सामायिक संयमी थे ।
तीर्थंकर महावीर और उनकी देशना : १५७