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स्पष्टीकरण इस अन्य के प्रथम भाग के षष्ठ परियोद में भगवान महावीर के तपश्चरण, वविास एवं कैवल्य का वर्णन
करते हुए लेरवा मे लिखा है - आगम ग्रन्थों में वधासो ३ का वर्णन प्राप्त होता है। इस वर्णमा से महावीर के मानवीय
जीवम का उज्व ल पक्ष ifive हो जाता है। यहां आगम । अन्यों से उमा अभिप्राय श्वेताम्बर साहित्य से है योटिक इ दिगम्बर साहित्य में इस प्रकार के यम नहीं पाये खाते
हैं। श्रम की संभावना के परिमार्जन के लिये यह स्पष्टीकरण किया जाता है।
( प्रकाशक )
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पष्ठ परिच्छेद तपश्चरण, वर्षावास एवं कैवल्य-उपलब्धि अन्तरंग और बहिरंग परिग्रहका त्याग करते ही महावीरको मनःपयंयज्ञानकी प्राप्ति हो गयी। वे इस ज्ञानको प्राप्तकर ग्रामानुग्राम विचरण करने लगे। उनकी सतत साधना बढ़ती जा रही थी। सोते-जागते, उठो बैठते, चलते-फिरते आदि सभी अवसरोंपर उनका मन चिन्तनसे विरत नहीं था । वे अपने आपको सभी ओरसे समेटकर आत्म-अनुभवमें लीन हो रहे थे और सर्वस्वका विसर्जनफर विश्व-मंगलकी कामनासे ओत-प्रोत थे। __ - ग्रीष्मकी तपती हुई दुपहरियामें खुले आकाशमें अग्नि-वर्षा करते हुए सूर्यके नीचे उतप्त पाषाण-शिलापर तपस्या करने बैठ जाते और अविचल भावसे दीर्घकाल तक तपस्यामें लीन रहते । वर्षा-ऋतुमें जन धनघोर वर्षा, भयंकर
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