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(२४) अस्नान-स्नान, अञ्जनादिका त्याग करना । (२५) क्षिति-शयन-शुद्ध एकान्त स्थानमें एक करवटसे शयन करना। (२६) अदन्त-धावन-दंतौन आदि नहीं करना ।
(२७) स्थित-भोजन-अपनी अञ्जुलिमें समपाद खड़े होकर नियमित भोजन करना।
(२८) एकमत या एक समयका भोजन-सूर्योदय और सूर्यास्त कालमें तोन घड़ी अर्थात् एक घंटा बारह मिनट समय छोड़कर एकबार भोजन करना । ___ महावीरने साधुके इन अट्ठाइस मूलगुणोंको स्वीकार किया और साधना द्वारा अपने गत आत्म-वैभवको प्रकाशित करनेका प्रयास किया । महाबीरने जीवनको ममतासे ऊपर उठकर मोह और विकारका त्याग किया। युवा योगिराट् महावीरने दिगम्बररूप धारणकर यह बता दिया कि वे जितेन्द्रिय हैं । विकारोंपर उन्होंने विजय प्राप्त करनेके लिये कमर कस ली है । निर्मलता
और सरलता उनके रोम-रोममें समा गयी है । वे हिमालयके समान दृढ्-प्रतिश होकर उपवासमें प्रवृत्त हुए। वह कुण्डग्रामके ज्ञातखण्ड उद्यानसे चलकर कुल्यपुर पहुंचे और वहाँ सहीने बकूल का पूज राजा यहाँ म गाहान ग्रहण किया।
वकूल या कूलको ही हिन्दी-कवियोंने 'नृपकुमार' कहा है । वरांगचरितमें इस वकूल नामक नृपकुमारको अत्यन्त धर्मात्मा कहा गया है। उत्तरपुराणमें इसे कूल बताया गया है।
तीर्थकर महावीर और उनकी पेशना : १३५