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अट्ठाईस मूलगुणोंको धारण
समस्त बाह्याभ्यन्तर परिग्रहका त्याग कर महावीरने अट्ठाइस मूलगुणोंके पालन करनेकी महाप्रतिज्ञा की। चे ज्ञान-ध्यान में लीन हो संयम-आराधनामें संलग्न हो गये !
महावीरने ( १ ) अहिंसा, ( २ ) सत्य, ( ३ ) अस्तेय, ( ४ ) ब्रह्मचर्य और ( ५ ) अपरिग्रह इन पांच महाव्रतोंके पालन करनेकी प्रतिज्ञा की । अनंतर उन्होंने पंच-समितियोंको स्वीकार किया । प्रमादजन्य पापोंसे दचने और मनको एकाग्र करने के लिए समितियों की आवश्यकता होती है। महावीर द्वारा स्वीकृत समितियाँ निम्न प्रकार हैं।
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( ६ ) ईर्ष्या-समिति - जीवोंकी रक्षा हेतु सावधानीपूर्वक चार हाथ आगेकी भूमि देखकर चलना ।
(७) भाषा समिति - हित मित और प्रिय वचन बोलना । (८) एषणा समिति--सावद्य रहित पवित्र भोजन ग्रहण करना । (९) आदान-निक्षेपसमिति - वस्तुओं ( साधु द्वारा स्वीकार्य पिछी, शास्त्र और कमण्डलु) के रखने और उठाने में प्रमादका त्याग कर सावधानी रखना ।
(१०) व्युत्सगं समिति - जीव-जन्तु रहिस भूमिपर मल-मूत्र त्याग करना । तीर्थंकर महावीरने पांच महाव्रत और पाँच समितियों के पालन करनेका संकल्प कर निम्नांकित गुणों-- सद्वृत्तियोंके पालन करनेकी भी प्रतिज्ञा की(११) स्पर्शन-निरोध - प्रिय और इच्छित वस्तुके स्पर्शका निषेध | (१२) रसना -निरोध - अभीप्सित वस्तुके रसास्वादनका त्याग । (१३) प्राण-निरोध - इच्छित गन्धके सूंघनेका निषेध ! (१४) चक्षु-निरोध - इच्छित वस्तुके अवलोकनका त्याग ।
(१५) श्रोत्र-निरोध — रागात्मक इच्छित संगीतके श्रवणका त्याग ! (१६) सामायिक - समभावका पालन |
(१७) चतुर्विंशतिस्तव - तीर्थंकरोंका स्तुति - पाठ ।
(१८) वन्दना -देव- गुरुको नमस्कार ।
(१९) प्रतिक्रमण – दोषोंका शोधन और प्रकटीकरण ।
(२०) प्रत्यास्थान - अयोग्यके त्यागका नियमन और व्रत पालन | (२१) कायोत्सर्ग - नियत कालके लिये देहसे ममत्व त्यागकर खड़े होना । (२२) केश- लुञ्चन – नियत कालमें उपवासपूर्वक अपने हाथसे केशोंका लुञ्चन करना - उखाड़ना |
(२३) अचेलकत्व - वस्त्रादि द्वारा शरीरको नहीं ढँकना ।
१३४ : सीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा