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तो वह भी अद्वितीय मातृपदपर प्रतिष्ठित थीं। उन्होंने तीर्थकरको जन्म देकर महान् गौरव निता था: लिलामे में गाई सा, , श्रद्धा थी और जन-कल्याणकी भावना थी। वह अपने पुत्रको प्रणय-सूत्रमें अवश्य बांधना चाहती थी, पर यह नहीं चाहती थी कि महावीर जीवनके सच्चे पदको छोड़ दें। अतः जब उसने महावीरके मनमें विवाहके प्रति विरक्ति देखी, तो वह मोन हो गयी। उसने अनुभव किया कि महावीरका कथन यथार्थ है । ____ वर्तमान समाज धनके आगे झुकना और घुटने टेकना जानता है । आज धनसे शक्ति, सम्मान, प्रतिष्ठा प्राप्त हो रही है । अतः जबतक समाजमें सत्य, न्याय और विवेककी प्रतिष्ठा नहीं होगी; तबतक समाज आत्म-निर्भर नहीं हो सकता है। राजकुमार महावीर सत्य-अनुसन्धानके हेतु यदि विवाह नहीं करते हैं, सो कुछ भी अनुचित नहीं है । महावीरका अनुचिन्तन ____महावीरके हृदयमें अनेक अनुभूतियां बड़ी तीव्रतासे जागृत होने लगीं। वे सोचने लगे कि "कहीं मैं पुरके कर्त्तव्यसे च्युत तो नहीं हो रहा हूँ। मातापिताको आज्ञा स्वीकार करना मेरा आवश्यक कर्तव्य है, पर मैं आध्यात्मिक पथका पथिक हूं। मुझे संयमका पाथेय चाहिये । पिसाका हृदय ममताका अतल समुद्र है, और माके वात्सल्यका अन्त नहीं है । पर ये सब व्यामोह हैं। मोहके परिणाम हैं। मोक्ष और मोह दो परस्पर विरोधी तथ्य हैं। इनमेंसे किसी एकका ही चयन करना होगा। मोह बन्धन है, त्याग मुक्ति है। मुझे मुक्ति प्राप्त करनी है। अस: मैं विवाहके कीचड़में क्यों फंसू ? यदि मैं बन्वनमें फंस गया, सो इस विकट परिस्थितिमें मुक्तिका प्रवर्तन कौन करेगा? मैं काम, वासना, हिंसा, अज्ञान, असत्य, पराधीनता और आडम्बरके दुर्भाग्यपूर्ण अनुबन्धपर नेत्र बन्दकर हस्ताक्षर नहीं कर सकूँगा। आदितीर्थंकर ऋषभदेवसे लेकर २३ वें तीर्थकर पार्श्वनाथ तकको उदात्त परम्परा मेरे समक्ष है। मुझ एक वैज्ञानिकके समान सत्यका अनुसन्धान कर कुछ नये अध्याय जोड़ने हैं । आत्माकी स्वतंत्रता उपलब्ध करनी है और वासनाकी दासतासे उन्मुक्त होना है। संसारका यह वैभव कब किसका हआ है ? यह सब कुछ क्षण-ध्वंसी है। मेघ-पटलके समान क्षणभरमें विलीन होनेवाला है।"
"आज व्यापक रूपमें प्राणियोंका बध हो रहा है । समाजमें विकृतियाँ बढ़ती जा रही हैं । स्वार्थने धमंकी पावनता को स्खण्डित कर दिया है। चारों ओर कपट और मायाचार पनप रहे हैं । मनुष्य-मनुष्यका शोषण कर रहा है । हिंसा,
तीर्थकर महावीर और उनकी देशमा : १२३