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करुण चीत्कारसे दिशाएं कम्पित हो रही हैं। मां! मैं अन्धकारको प्रकाशमें बदलना चाहता है और सामाजिक एवं सांस्कृतिक क्रान्ति उत्पन्न कर समाजको मार्ग-दर्शन कराना चाहता हूँ। में जीवनके निर्मल लक्ष्यको छोड़कर विषये. च्छाओंमें उलझना नहीं चाहता। साधनामें सबसे बड़ा बाधक परिग्रह है और यह परिग्रह पारिवारिक सम्बन्धोंसे प्राप्त होता है । इसका सर्वथा त्याग करना अनिवार्य है। विवाह जोवनकी परिधिको संकीर्ण कर देता है। अत: इसका त्याग तो आवश्यक हो नही, अनिवार्य है।" __ "जीवनकी भूलों और अन्धकारके बीच प्रकाशमान सत्यको देखना ही अधिक महत्त्वपूर्ण है । अत: में सत्यके अनुसन्धानमें प्रवृत्त होनेका प्रयास करूंगा।"
"सत्य प्रसन्नताका जनक है। यह सभ्यताका उत्पादक है और यही जीवनको श्रेष्ठ एवं पवित्र बनाता है। सबसे ऊंची महत्त्वाकांक्षा जो किसीको भी हो सकती है, वह सत्य ज्ञानको है। सत्य ही व्यक्तिको परोपकार करनेका अधिकसे अधिक सामर्थ्य देता है। यही तलवार भी है और दाल भी है। यह आत्माका पवित्र प्रकार है : मानद खोन तारने किया है, यति मिलता है और मिलता है अनुभवसे ।”
राजमाता त्रिशला महावीरके उपर्युक्त कथनको सुनकर स्तब्ध हो गयीं। बह सोचती थीं कि पुत्रका विवाह करूगी। राजभवन में पुत्रवधू लाकर मंगलगीतोंसे उसे मुखरित कर दूंगो । फूल जेसी सुकुमारी पुत्रयधू जब राष-प्रांगणमें विचरण करेगी, तो मेरे सभी स्वप्न साकार हो जायेंगे।
महावीरने तो एक ही झटके में मेरे समस्त स्वप्नोंके भव्य भवनको धूलिसात् कर दिया। अतः वह पुनः साहस एकत्र कर कह उठी-"बेटे ! तुम लोककल्याणमें प्रवृत्त होगे, अधर्म और अज्ञानके अन्धकारको दूर करोगे, पर इस राज्यका क्या होगा? इसे कौन सम्हालेगा ?" ____ महावीरने संयत स्वरमें उत्तर दिया-"माँ! सभी वस्तुएं नष्ट होनेवाली हैं। जो नष्ट होनेवाली वस्तुएं हैं, उनकी हमें चिन्ता नहीं करनी चाहिये । हमें सो शाश्वत सत्यको प्राप्त करना है और इसी उपलब्ध सत्य द्वारा समाजको व्यवस्थित करना है। यह जीवनसे पलायन नहीं है, अपितु वास्तविक जीवनके साथ समझौता करना है।" माताका आशीर्वाद
माता त्रिशला साधारण माता नहीं थीं। यदि महावीर अद्वितीय पुत्र थे, १२२ : तीर्थकर महावीर और उनकी प्राचार्य परम्परा