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मनीषा प्रखर थी और विवेक उनके जीवनका सावधान प्रहरी था । उनका जीवन क्रान्तिका प्रतीक था, मुक्तिका दिव्य छन्द था और शक्तिकी एक विशाल शोधशाला था । यौवनके प्रकट होनेपर भी वे जलमें रहनेवाले कमलके समान संसारसे निलित और निष्पक थे। उनका जीवन अनासक्त था। उनके व्यक्तित्वके धरातलपर संसार था, पर तलमें वैराग्यका निवास था। विष्यवेह और पराक्रम
अखण्ड और सौन्दर्य राशिने उनके तारुण्यको कृतार्थ कर दिया था। दिलक्षण देह, सुगठित अवयव', कर्जस्त्री मन, उद्दीप्त मुख, अंग-अंगके अपूर्व पुरुषार्थ एवं युवावस्थाका परिस्फुरण करवट ले रहा था । वस्तुतः महावीरका उज्ज्वल नया यौवन, विलक्षण पुरुषार्थ, बहुचित पराकम और अप्रतिम तेज एक नया मागं ढूँढ रहा था। सुराज बहावीर गोबत सणको को दीदामें मूर्तिमान करना चाहते थे। वे नरसे नारायण बनकर स्वातन्त्र्य-उपलबिके लिये प्रयत्नशील थे।
यौवनने उनके विवेकको आच्छादित नहीं किया | वे निघूम अग्निके समान स्पष्ट और भास्वर बने रहे। उनकी मनीषा अहर्निश आत्मोन्मुख होती गयी । अहिंसाका रचनात्मक सूत्र उनके हाथ में आकर क्रियात्मक रूप धारण करने लगा | जैसे-जैसे युवावस्थाका ज्वारभाटा बढ़ता जाता, वैसे-वैसे महावीर साधना-पयको ओर बढ़ने का संकल्प करते। अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रहके अंकुरने अब विराट वटवृक्ष का रूप धारण कर लिया था। लोक-कल्याण और आत्म-कल्याणका लक्ष्य उत्तरोत्तर वृद्धिंगत होता गया। वे काम, क्रोध, लोभ, मोहादि अन्तरंग शत्रुओंसे जूझनेके लिये तैयारो करने लगे।
यह सत्य है कि महावीर राजकुमार थे। राज्य था, वैभव था, सेना थी, सेवक थे, सेविकाएं थीं, विलास था और आमोद-प्रमोदके अनेक साधन थे। युवक महावीरके चारों ओर लौकिक सुखोंका अम्बार लगा हुआ था। उन्हें सभी प्रकारका आदर-सम्मान प्राप्त था। लक्ष-लक्ष मानवोंका प्यार, श्रद्धा और स्नेह उन्हें प्राप्त था। उनकी सात हाथ उन्मत काया यौवन की कान्सिसे जगमगा उठी । प्रजा उनके बलिष्ठ और कान्तिमय शरीरको देखकर सोचती थी कि एक दिन आयगा जब यही भलौकिक महापुरुष उसके अध्यात्म-मार्गका विधाता बनेगा। इस अलोकिक महापुरुषका जन्म किसी एक प्रान्त या वर्गके लिये नहीं हुआ है, यह तो सम्पूर्ण विश्वके प्राणीमात्रका कश्याण करेगा।
सीकर महावीर कौर उनकी देशमा : ११७