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पञ्चम परिच्छेद युवावस्था, संघर्ष एवं संकल्प
ग्रीष्म ऋतुके पश्चात् वर्षा जिस प्रकार आरम्भ होती है, उसी प्रकार केशो के अनन्तर महावीरके जीवन में भी युवावस्थाका अध्याय आरम्भ हुआ । लीने पुष्पका आकार ग्रहण किया और चारों ओर पुष्पका सौरभ फैलने लगा । किशोरावस्था के आसनपर यौवनने अंगड़ाई ली, धूप-छाया एकसाथ अभिव्यक्त हुई । कैशोर्य की विदाई और यौवनका आगम एक अपूर्व वय- सन्धि थी। एक ही प्रांगण में सब कुछ भव्य और मनोहर प्रतीत हो रहा था। महावीरका व्यक्तित्व विलक्षण था । शरीरमें अखण्ड यौवनका साम्राज्य रहनेपर भी उनका मन संसारके समस्त प्राणियों के लिये करुणामें निमग्न था । समत्व उनको त्रास थी और परिणाम विशुद्धिपर उनका विशेष ध्यान था । मन, वाणी और कर्म से वे सम्वत् प्रवृत्त थे ।
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