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है और इसका बना रहना भी आवश्यक है। आजको इस संकुचित विचारधाराको उदार और विस्तृत बनाना आवश्यक है।
निस्सन्देह महावीर किशोरावस्थासे ही विचारशोल थे। वे जीवन के प्रथम चरणसे ही समाजकी विकृतियोंके लिये चिन्तित थे। वे समता, सहिष्णुता,अभय, अहिंसा एवं अनासक्ति आदि गुणोंका प्रचार और प्रसार चाहते थे। वे लोककल्याणकी उज्ज्वल ज्योति जलाकर समाजको आलोकित करना चाहते थे। उन्होंने किसी विद्यालय या महाविद्यालयमें जाकर विद्याका अभ्यास नहीं किया था। उनकी सर्गिक प्रतिभा अनुपम थी । वे सच्चे कर्मयोगी, महान दार्शनिक, आत्मद्रष्टा और जीवन-क्षेत्रके अमर योद्धा थे। विश्वमें बड़े-बड़े युद्धोंके विजेता तो बहुत व्यक्ति हुए हैं, किन्तु कामनाओं और वासनाओंपर विजय प्राप्त करनेवाले महावीर कम ही हुए हैं। ___महावीरने जीवन के जिस क्षेत्रमें प्रवेश किया उसमें अपने आचरण और व्यवहारोंका मान-बिन्दु स्थापित किया । उन्होंने स्वयं लोक-कल्याणके लिये कष्ट सहे और अपने पुरुषार्थ द्वारा बड़ी-बड़ी विघ्न-बाधाओंको समाप्त किया। अपने पवित्र आचरण और दिव्य-शानको ज्योतिसे जन-जनका अनुरंजित किया।
जिस गुरुडममें धनिक-गरीब, राजा-रंक सभी डूबे हुए थे, उस गुरुतमको दूर करने के लिये उन्होंने संकल्प लिया । __उनके गुणोंसे आकृष्ट होकर सह्योगी और समवयस्क ही उनके प्रति नत मस्तक नहीं होते थे, अपितु देवता भी उनका चरण-वन्दन करते थे, उनका यशोगान करते थे और अपनी समस्याओंका समाधान प्राप्त करते थे। अलौकिक शक्तियोंका वरण
किशोरावस्था में ही महावीरको अगणित अलौकिक शकियाँ प्राप्त हुई। उनमें देवी गुण प्रादुर्भूत हुए। जनता उन्हें श्रद्धा और आदरको दृष्टिसे देखती थी। कोटि-कोटि मानव उन्हें वीतराग समझकर उनको पूजा करते और उनके पवित्र चरणों में अपनी श्रद्धा निवेदित करते थे। उनका पराक्रम मित्रोंके लिये अनुकरणीय था। उनके शरोरसे न तो दुगंधित पसीना निकलता और न अन्य किसी प्रकारकी अशुचिता ही दृष्टिगोचर होतो थी । अद्भुत रूप, समचतुरस्र संस्थान, वनवृषभ-नाराय-संहनन, अनन्त बल, अतिशय सुगन्धता एवं एकहजार आठ शुभ-लक्षण उनकी शारीरिक आभाको आलोकित करते थे। इसमें सन्देह नहीं कि महावोरको नाना प्रकारके अतिशयों और वैभवोंने वरण किया था। ११४ : तीर्थकर महावीर और उनको आचार्य-परम्परा