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नत मस्तक हो गया और उनकी स्तुति कर वहाँसे चला गया। इसी प्रकार इन्होंने मदोन्मत्त हाथीको वश में करके उसे गजशालामें बांध दिया | महावीरको इस निर्भयता और पराक्रमसे पूरा वैशालो गणतन्त्र प्रभावित हुआ। वैराम्य और निष्कामताका कुर
तीर्थकर महावीरके माता-पिता भगवान पार्श्वनाथकी परम्पराके अनुयायी थे। उनके अहिंसा, करुणा, दया बोर संयमशीलता आदि महान गुणोंके कारण उनका जीवन आलोकिस पा । अतः महावीरको उनसे इन गुणोंकी आदर्श छाया प्राप्त हुई । उनका वैराग्य शनैः शनैः बढ़ने लगा और आत्मशुद्धिकी ओर जनके पग तेषीसे गतिशील होने लगे। संसारके वैभव उन्हें निस्सार और स्वादहीन लगने लगे। उन्होंने लोकजीवन में व्याप्त बुराइर्शका अध्ययन किया और उन्हें मनुष्यद्वारा मनुष्यका किया जानेवाला शोषण अनुचित प्रतीत हुआ और उनका मन बितोह र नसारे वो सनामाही मना गरम पाहते थे, जिसमें किसी भी प्रकारका भेद-भाव न हो, प्राणीमात्र समान हों और सभीको जीनेका अधिकार हो । फलतः उन्होंने माठ वर्षको अवस्थामें ही निम्नलिखित नियमोंको धारण किया
(३) जीवोपर दया करना और अहिंसक वृत्ति रखना, (३) सत्य भाषण करना, (६) अचोर्यव्रतका पालन करना, (४) ब्रह्मचर्यवसका धारण करना, (५) इच्छाओंको सीमित करना ।
विश्वके इतिहासमें ऐसा एक भी बालक दिवसायी नहीं पड़ेगा, जिसने पाठ वर्षको अवस्थामें ही जीवोंपर दया करने, सत्य बोलने, चोरी न करने, ब्रह्मचर्य
मूमात् प्रभृति मुबस यावरस्काधमवेष्टता । विटपेम्पो निपपाशु धरित्री भगविलाः ।। प्रपलायम्तं तं दृष्ट्वा पालाः सर्व पकायषम् । महामये समुत्पले महत्तोऽयो न तिति ।। सज्जिबाशतास्युनमाया तमहिं विभीः । कुमारः क्रीडयामास मातृपर्यवत्तदा ॥ विनम्ममाणहम्मोनिधिः संगमकोऽमरः । स्तुस्वा ममान्महावोर इति माम पकार सः ।
-उत्तरपुराण ॥२८९-२९५. सीकर महागीर और उनकी देशमा : १११