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विश्ववन्य वैशालिक तोयंकर महावीरको २७ मार्च ई० पू० ५९८ को जन्म दिया। इस समय समस्त ग्रह उच्च स्थानपर स्थित थे और चन्द्रमा उत्तराफाल्गुनी नक्षत्रका उपभोग कर रहा था । चैत्रशुक्ला त्रयोदशी चन्द्रवारकी रात्रिका वह अन्तिम प्रहर मांगलिक था, जिसमें यर्द्धमानका जन्म हुआ। ___ तीर्थंकर महावीरके जन्मके समय चतुर्थ काल दुषम-सुषुममें ७५ वर्ष ३ महीना अवशिष्ट थे। वैशालीके भाग्य जग चुके थे 1 हिंसा, असत्य, अन्याय, आडम्बर एवं विकृतिको सलकार शीव, कृा हुई। प्रकृतिने समस्त वातावरणमें मधुरिमा घोल दी। अज्ञानका अवसान हुआ और ज्ञानसूर्यका उदय । वैशालीका उपनगर कुण्डनाम आल्हादसे परिपूर्ण था। प्राणीमात्र शान्ति और सुखको श्वांस ले रहा था । समस्त परिसर हर्षोन्मत्त हो बामोद-प्रमोदमें संलग्न था।
तीर्थंकर वर्द्धमानका शरीर काञ्चन आभायुक्त था और मुखमण्डलपर अगणित सूर्योकी दीप्ति विद्यमान थी । नवजात शिशु के शरीरसे दिव्य कान्ति फूट रही थी और ऐसा अनुभव हो रहा था कि बालकके दर्शनमात्रसे उपनगर निरापद, निष्कंटक और समद्ध बन गया था। प्राणियोंके हृदयोंके साथ-साथ समस्त दिशाएं भी प्रसन्न हो गयी थीं । आकाश निर्मल और प्रकृति मनोरम हो गयी पो । देवों द्वारा मत्तभ्रमरोंसे व्याप्त पुष्पवृष्टि और दुन्दुभिनाद सम्पन्न हुए।
देवों द्वारा जन्माभिषेक
तीर्थंकरका जन्माभिषेकोत्सव देवोंने सम्पन्न किया और स्वयं महाराज सिद्धार्थने अपने भवनमें दस दिनों तक आनन्दोत्सव मनाया | दीपक प्रज्वलित कर प्रकाश किया गया । दान, पुण्य आदि शुभकृत्य किये गये और कारागारोंसे बन्दीजनोंको बन्धनमुक्त किया गया ।
सौधर्म इन्द्रका आसन कम्पित हुआ और भवनवासी आदि देवोंके यहाँ घंटाको ध्वनि हुई । अवधिशानसे देवोंने अवगत किया कि कुण्डग्राममें अन्तिम तीर्थकर बर्द्धमानका जन्म हो चुका है। वे हर्षमें झूम उठे और समस्त देवपरिवार नृत्य-गान करता हुमा कुण्डपुर पहुंचा । ऐरावत हाथी सजाया गया, सारा गया और उसके अपर विभिन्न उपकरण रखे गये । मानवताका शृङ्गार करनेवाले वर्षमानका जन्माभिषेक सम्पन्न करनेके हेतु देव-परिवार चल पड़ा । सौधर्म इन्द्रने कुण्डपुरमें पहुंचकर राजमहलकी तीन प्रदक्षिणाएं की और माता त्रिशला -प्रियकारिणीकी स्तुति की ।
तीर्थकर महावीर और उनको देशना : १०५