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माता-पंचेन्द्रियाँ चोर हैं। ये रत्नत्रयरूप धर्मको चुरानेवाली हैं । विषयासक्ति ही जीवके विवेकको चुराती है ।
देवियाँ-शूरवीर कौन है ? ___ माता-जो धैर्यरूपी खड्गसे परीषहरूपी महायोद्धाओंको, कषायरूपी शत्रुओंको एवं काम-क्रोधादि रिपुओंको जीतनेवाला ही शूरवीर है।
देवियाँ-पिञ्जरमें कोन आबद्ध है ? कठोर शब्द करनेवाला कोन है और जीवोंका आधार क्या है ?
माता-शुक पिउजरमें आबद्ध है, काफ कठोर शब्द करता है और जीवोंका आधार लोक हे।
देवियाँ-मधुर शब्द करनेवाला कौन है ? पुराना वृक्ष कौन है ? कैसा राजा छोड़ देने योग्य है ?
माता-मयूर तथा कोयल मधुर शब्द करनेवाले हैं। कोटरवाला वृक्ष पुराना है । क्रोधी राजा छोड़ देने योग्य है ।।
इस प्रकार देवियोंने मातासे विभिन्न प्रश्न पूछे और नाना प्रकारको प्रहेलिकाएँ उनके समक्ष उपस्थित की। देवियाँ माता त्रिशलाकी सेवामें अहर्निश उपस्थित रहती थीं। तीर्थकर महावीरके गर्भमें आते हो माता त्रिशलाका मन अपार वात्सल्य और उल्लाससे भर गया। सिद्धार्थ महाराजका घर-आंगन देवोत्सवोंका रंगमंच बन गया । सारा कुण्डग्राम उमंग, उत्साह और पुलकका अनुभव कर रहा था। कृषिकी समृद्धि और मैदानोंकी हरीतिमा सभीके मनको उल्लसित करती थी। वैशालीका यह उपनगर धन-धायसे समद्ध होता हुआ मंत्री, प्रमोद और प्रेमका आगार बन गया । सब कुछ विलक्षण और सुखद दिखलायी पड़ने लगा। देवांगनाएं और परिचारिकाएँ छायाके समान त्रिशलाको सेवामें उपस्थित रहती थीं।
माता त्रिशलाका मन आमोद-प्रमोद एवं शास्त्र-चर्चा और तत्त्व-चर्चाके कारण अत्यन्त पावन रहता था । माताके पवित्र संस्कारोंका प्रभाव गर्भस्थ शिशुपर भी पड़ने लगा । महाराज सिद्धार्थ भी त्रिशलाकी समस्त सुख-सुविधाओंका ध्यान रखते और एक क्षण भी उसे अप्रसन्न नहीं रहने देते। परिचारिकाएँ अप्रमत्तभावसे रानी प्रियकारिणीकी सेवामें उपस्थित रहतीं। इस प्रकार वैशालीका उपनगर कुण्डग्राम समृद्धि और सुखसे ओत-प्रोत हो रहा था। खुल गये भाग्य वैशालीके ___ नौ माह और आठ दिनकी गर्भावधि समाप्त कर त्रिशलाने विशाला वैशालोमें १०४ : तीपंकर महावीर और उनकी आपार्य-परम्परा